देर पर दुरुस्त

सावनी जब से शादी करने इस घर में आई है, घर के लगातार काम के चक्रब्यू में ऐसी उलझकर रह गई है कि वह घर में कैद हो गई है, वह खिलंदड़ी सावनी के अन्दर से नदारद है।

यह सच है कि दोनों ने अपनी पसंद से शादी की है और घर वालों को इसमें शामिल भी नहीं किया। जिग्नेश सावनी को घर ले आया, समय और मौके की नजाकत को देखकर घर वालों ने दोनों को घर में रहने की और खुद को समझा कर सावनी को बहू मानने के लिए तैयार कर लिया था।

जितना घरवाले जिग्नेश को जानते हैं इतना तो वे सावनी को नहीं जान पाए हैं। यह समझ रहे हैं कि जिग्नेश उतावलेपन में किए गए निर्णय को पता नहीं अब कितने दिन निभा पाएगा और शादी जैसे गंभीर मामला बार-बार तो नहीं बदला जाता, यह बात घरवाले चाहते हैं कि जिग्नेश समझे और कुछ दिनों बाद ही जिग्नेश ने सावनी को घरवालों के हवाले कर खुद बेफिक्र हो गया था।

चुकी घरवालों से बचते बचाते लव मैरिज की थी तो अक्सर ही सावनी डरी सहमी रहती।

जब कभी सावनी एकांत में जिग्नेश से अपने लिए समय मांगती या कहीं साथ घुमाने के लिए कहती, जिग्नेश बड़ी आसानी से उसे समझा देता, उसका जो काम है उसे वहां पर पूरे वक्त खड़े रहना पड़ता है इतना थक जाता है कि उसे बाहर कहीं जाने की शक्ति ही नहीं बचती और अंत में एक वाक्य बोलना नहीं भूलता कि यह सब वह सावनी के लिए कर रहा है।

सावनी मन मसोसकर रह जाती, उसे समझ ही नहीं आता उसने शादी करके खुद के लिए पिंजरा खरीद लिया है या शादी के बाद सभी के साथ ऐसा होता है, उसने ऐसे जोड़े देखे हैं, जो पार्क में, सिनेमाघरों में, बाजारों में एक साथ घूमते हुए चुहल बाजी करते हैं। ऐसी जगहों पर नये जोड़ों को लोग पलट-पलट कर जरुर देखते हैं, कहीं न कहीं लड़कियों के दिल में अरमान रहते हैं वह भी कभी किसी दिन इसी तरह हाथों में हाथ डालकर अपने प्रीतम के साथ घूमेगी और तब बड़े गर्व से और आत्मसम्मान से भरी उसकी चाल होगी।

सावनी के शुरुआती दिनों में जिग्नेश के शाम को लोटने के इंतजार में कटते, फिर धीरे-धीरे जिग्नेश के लौटने का समय भी बदलने लगा और वह देर से घर आने लगा, भरे पूरे परिवार में सावनी सारे दिन के काम के बाद थक हार कर कई बार सो जाती, उस के जीवन की दिनचर्या उबाऊ सी होने लगी, उसके सारे जवान होते अरमान धीरे-धीरे मुरझाने लगे हैं।

गर्मी के दिन थे, सावनी शाम के काम से निपट कर छत पर चली गई और वहां घंटों तारों को देखती हुई मंद-मंद चलती हवा में जाने कैसे वह सो गई।

जिग्नेश लोटा देखा कमरे में सावनी नहीं है, उसने एक दो आवाज लगाई, जब कोई प्रतिउत्तर नहीं मिला तो वह रसोई घर की तरफ बढ़ गया, रसोई घर में भी अंधेरा है सभी अपने अपने कमरे में सो रहे हैं फिर इतनी रात को सावनी गई कहाँ होगी, पहली बार जिग्नेश को डर की लहर दौड़ गई। पूरे घर का चक्कर लगाया है पर सावनी कहीं नहीं नज़र आई।

हॉल में आकर उसकी नजर सीढ़ियों पर गई, उसने सोचा क्यों न छत पर देख लिया जाए, छत पर एक बेंच पर सावनी सोई हुई है। चांदनी पूरे शबाव पर है और शायद इसी शीतलता ने अपनी थपकी से सावनी को यही सुला दिया होगा, जिग्नेश बहुत देर तक सावनी को निहारता रहा, उसके इस मासूम चेहरे में उसे पहले वाली सावनी तो कहीं नजर ही नहीं आई।

सावनी इतनी सुकून भरी नींद में सो रही थी कि जिग्नेश का मन ही नहीं है कि उसे उठाए और वह भी दूसरी बेंच पर लेट गया। जिग्नेश तारे गिनने के साथ-साथ अपने जीवन पर भी नजर डालने लगा, समझ आया कि उसने कुछ दिया ही नहीं, हर लड़की की चाहत होती है, सावनी तो समय ही तो मांगती रही है खुद को समझने के लिए और उसे समझाने के लिए। ओर वह यह भी नहीं दे पाया। उसने गौर किया कि कुछ समय से सावनी समय भी नहीं मांग रही है, सावनी की खामोशी से भी वह समझ नहीं पाया।

दोनों ने एक साथ निर्णय लिया था कि तमाम उम्र साथ रहेंगे, एक दूसरे को समझ कर, वह तो घर वालों के हवाले कर सावनी की जिम्मेदारी से भी मुक्त हो गया, ओर सावनी मौन रहकर भी अपना वादा निभाती रही।

सब घर के सदस्य चैन से सो रहे हैं, किसे फिक्र है सावनी कहाँ है, आज वह समझ पा रहा है कि सावनी की भावनाओं को आहत कर, अपने किये किसी भी वादे पर खरा नहीं उतरा है।

देर रात तक जिग्नेश सोचता रहा, चुक कहां हो रही है। समझ की इसी परिपक्वता की तो सावनी को भी चाहत है।

©A

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