ग़ज़ल

सुर्मई आँख सजाने की जरूरत क्या थी,
सोए ज़ज्बात जगाने की जरूरत क्या थी।

देर तक बात चली आपकी उस महफिल में,
पर वहाँ बाद उठाने की जरूरत क्या थी।

हमने माना कि गुनाहगार है हम उल्फत के,
बेसबब प्यार जताने की जरूरत क्या थी।

इश्क में अपने वादे जो किए टूट गए,
इक झलक हमें दिखाने की जरूरत क्या थी।

आँखों आँखों में चढ़ी प्यार की पींगे कितनी,
कुफ्र- उल्फत के बढ़ाने की जरूरत क्या थी।

©A

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