ग़ज़ल

प्यार भी हमको रूहानी चाहिए,
अब ज़रा कीमत बढ़ानी चाहिए।

खोलकर बैठे पिटारा याद का,
उसमें कुछ यादें पुरानी चाहिए।

हुस्न की बगिया महकती हो जहाँ
इक कली चुप से उठानी चाहिए।

सुरमई संध्या है बिखरी चार सू ,
दीप की अब लौ बढ़ानी चाहिए।

खींच भी लो तुम मुझे आगोश में,
जन्म की यह दूरी मिटानी चाहिए।

©A

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