पत्थर नहीं दिल है

भाग 5

इस तरह की बातों से होता यह है कि धीरे-धीरे दोनों बहुत सी चर्चाओं में हिस्सा लेने लगे और आफिस से हटकर देश, घर, परिवार और आज के माहौल पर चर्चा होने लगी, जब एक दूसरे को समझने जानने लगे तो बातें देर तक होने लगी।

कुछ समय बाद जब दूसरी बातें समाप्त हो गई तो अपने बारे में बताने के लिए पहल त्रिवेणी ने ही की और उसने अपनी पहली शादी के असफल होने का किस्सा सुना दिया। उसने यह भी बताया कि उसे दुख है की उसने इतनी शिद्दत से प्यार किया और उसे इतनी बड़ी चोट मिली।

धवल पहले तो सुनता रहा, गौर से त्रिवेणी को निहारता रहा आज उसे त्रिवेणी के चेहरे पर सच का तेज देदीप्यमान होता नजर आया, कितनी सहजता से सच बोल देती है न, कोई दुराव छुपाव नहीं, इतने दिनों में धवल इतना तो समझ ही चुका है कि बहुत ही सरल हृदय है त्रिवेणी।

“क्या तुम्हें लगता है कि तुम ने जिसे चाहा था वह पक्ष तुम्हारे लिए उचित था,”… धवल जानना चाहता था कि क्या त्रिवेणी आज भी उतनी ही शिद्दत से प्यार करती है।

“यह सोचकर कौन करता है प्यार, यह तो हो जाता है, फिर मुझे तो कभी इन बातों के लिए समय ही नहीं मिला, जो सामने था उसे ही प्यार करना था इसलिए दुख हुआ, चोट इतनी गहरी हैं कि प्यार के हार के साथ, तमाम उम्र के लिए धाव बन गया है, सबसे गहरी चोट लगी है, जो शायद कभी नहीं भरेगी।”… त्रिवेणी का स्वर बोलते बोलते भर्रा गया आँखों से आँसू बह निकले।

धवल से पलंग पर बैठा नहीं गया, उठकर त्रिवेणी के पास कॉउच पर आ गया। करीब बैठकर भी उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि त्रिवेणी के आँसू पोंछ दें, अनचाही सी झिझक ने हाथ रोक दिया, कुछ देर यूं ही बैठा रहा।

कुछ देर बाद त्रिवेणी संभली तो उसने सामने नजर उठा कर देखा धवल अपनी जगह पर नहीं है, फिर उसे लगा धवल तो बाजू में बैठा है, अपने आँसू को झट-पट पोंछ डाले, अब उसे अपने रोने पर अफसोस हो रहा है कैसे वह इतनी कमजोर हो गई।

“आप आगे भी मुझसे सब कुछ कह सकती हो, कह दोगी तो दिल हल्का हो जाएगा,”… धवन ने अपनेपन से कहा।

त्रिवेणी धवल की तरफ देखा उसकी आँखों में भी आश्वासन था कि तुम उससे अपनी दिल की बात कह सकती हो, त्रिवेणी थोड़ी देर मौन रही, अपने को संभालती समेटती रही, लेकिन आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।

“हां तो अब बताओ, मैं कहाँ गलत थी, मेरी क्या गलती है, मुझे क्यों सजा मिली, मुझे अफसोस यही है कि मुझे छला गया है, मैं ठगी गई,”… कहते-कहते त्रिवेणी फफक फफक कर रो दी।

अब धवल से रुका नहीं गया और उसने हाथ बढ़ाकर त्रिवेणी के कंधे को सहला दिया, त्रिवेणी कटे हुए पेड़ की तरह धवल की गोद में जा गिरी और फूट-फूट कर रोने लगी आज लग रहा है कि वह जी भर के रो ले और इतने दिनों से इकट्ठा हो चला दर्द का यह समंदर बह निकले।

धवल उसे धीरे-धीरे सहलाता रहा, चेहरे से बाल को हटाता रहा और एक नन्हे बच्चे की तरह उसे सहेजता रहा।

धवल को आज जाने क्यों इस नन्ही सी परी त्रिवेणी पर प्यार हो आया इतना दर्द समेटे हैं कोई जान भी नहीं सकता, इतने हंसमुख चेहरे के पीछे दर्द के इतने बड़े-बड़े पहाड़ खड़े हैं, जिन्हें वह सबसे छुपाती फिरती है, धवल ने भी तो शुरुआत में बहुत कुछ उल्टा सीधा बोल कर अपना गुस्सा निकाल लिया था, लेकिन इसने पलट कर कभी कोई जवाब नहीं दिया और न ही कभी विरोध किया, पता नहीं शायद अपने ही दर्द में उल्झी हुई है या वह दर्द की इंतहा देखना चाह रही थी कि इंसान कितना दर्द दे सकता है, और वह कितना बहन कर सकती है।

उफ…बिना सोचे समझे उसने भी तो जाने क्या-क्या नहीं कहा है और हमेशा उसे लगा था कि इस सब में त्रिवेणी की सहमति है, धवल अपने बारे में ही सोचता रहा और यह सोच ही नहीं पाया की त्रिवेणी ने भी बहुत कुछ झेला होगा, क्योंकि उसे धोखा मिला था तो वह यह जानना भी नहीं चाहता था कि कोई स्त्री इतना दर्द भी झेल सकती है, उसे तो अपनी पत्नी ने ही धोखा दिया और चली गई, औरत त्रिवेणी जैसी भी तो होती है यह भी तो वह पहली बार ही जान पा रहा है।

त्रिवेणी के दर्द को देखकर तो लगता है की औरत सहनशक्ति की प्रतिमूर्ति होती है, अपने में कितना दर्द समेट लेती है और उसे अपनी भविष्य की भी चिंता नहीं होती सब कुछ पीती रहती है जैसे खुद भोले शंकर हो गई हो सारा जहर गटक लेगी, अरे यह भी कोई बात है पढ़ी लिखी हो कम से कम अपने लिए तो खड़े होना सीखें लेकिन नहीं, जैसे मां बाप ने पढ़ा दिया बस उसी पर चल दिए, यह भी कोई बात हुई।

धवन और भी जाने क्या क्या सोचता चला गया और सोच का नजरिया उसका सकारात्मक मोड़ लेता रहा जब वह सोच-सोच कर थक गया उसने देखा त्रिवेणी में कोई हलचल नहीं है और वह सो गई उसने धीरे से उसका सर को काऊच के तकिए पर रखा और खुद अपने पलंग की तरफ बढ़ गया।

क्रमश:..

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