बहर
2122,2122,2122,212

आदमी तो नेक था, सबने कहा अच्छा न था,
हाँ बहुत खुद्दार था, हरगिज़ बशर झूठा न था।

सब्र करते जान जाते आप कुछ मेरी तलब,
कुछ मुलाकातों से मेरा भाग्य तो बदला न था।

चेहरे पर सच चस्पा लिए नजरें खोजती रही,
उस बेगुनाही की कतार में कोई अपना न था।

छोड़ ही तो आई तमाम रिश्तों की बंदिशें,
इंतजार करते तू भी तो वहा दिखा न था।

बेशर्म ही तो हो गई सारी भावना उड़ेल कर,
लेकिन बंधन हमारा ऐसा भी तो गहरा न था।

©A

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