बापूजी
एक समय की बात है, भारत के उत्तराखंड राज्य में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था। वह एक बुद्धिमान और दयालु व्यक्ति था जिसे गाँव में सभी लोग प्यार और सम्मान करते थे। एक दिन, बूढ़े व्यक्ति ने शांति और सांत्वना पाने के लिए पहाड़ों की यात्रा पर जाने का फैसला किया।
उसने अपना सामान बंध लिया और अपनी यात्रा पर निकल पड़ा। जब वह चल रहा था तो उसने हरे-भरे पेड़ों वाली एक खूबसूरत घाटी और उसके बीच से बहती हुई एक नदी देखी। उन्होंने वहाँ रात को आराम करने और प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेने का फैसला किया। बूढ़ा व्यक्ति घाटी की सुंदरता से चकित हो गया और उसने कुछ दिन यहीं रुकने का फैसला किया। उसने पास में एक छोटी सी झोपड़ी ढूंढी और रात बिताने के लिए वहीं बैठ गया। अगली सुबह, उसने घाटी का पता लगाना शुरू किया। उसने कई खूबसूरत पक्षियों और जानवरों को एक-दूसरे के साथ सद्भाव से रहते हुए देखा। उसने यह भी देखा कि घाटी के लोग बहुत मिलनसार और मेहमाननवाज़ है। बूढ़ा व्यक्ति घाटी और उसके लोगों की सुंदरता से इतना प्रभावित हुआ की उसने लंबे समय तक रुकने का फैसला किया। उसनेे घाटी के लोगों को अपनी मातृभूमि की संस्कृति और रीति-रिवाजों के बारे में कहानियाँ सुनाना शुरू किया। घाटी के लोगों को कहानियाँ सुनना बहुत पसंद था और वे उन्हें बापूजी कहने लगे, जिसका स्थानीय भाषा में अर्थ “पिता” होता है।
बापूजी ने घाटी में कई साल बिताए और लोगों को अपनी मातृभूमि और प्रकृति के महत्व के बारे में सिखाया। उन्होंने उन्हें एक-दूसरे के प्रति दयालु और सम्मानजनक होने के महत्व के बारे में भी सिखाया। घाटी के लोग बापूजी से प्यार करते थे और वे उनकी सुनाई कहानियों को कभी नहीं भूलें। उन्हें हमेशा उस बुद्धिमान बूढ़े व्यक्ति के रूप में याद किया जायेगा जो अपनी मातृभूमि का थोड़ा सा हिस्सा उत्तराखंड के लोगों के लिए लेकर आये थे।
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