ग़ज़ल
तुम्हारी बेवफाई मुझको अक्सर रुलाती है,
मेरी वफा के घर तो फिर भी आ ही जाती है।
दिये जलते हैं जब भी तुम्हारा नाम लेती हूँ,
मेरा दिल काँपता है जब जुदाई याद आती है।
तू चाहे या न चाहे यह मेरा वादा तो है तुझसे,
करूँगी मैं भरोसा तुझपे मेरी रूह बताती है।
हर धड़कन का आलम ये संभलना ही नहीं चाहे,
तेरे आने की हर आहट ही तड़पन को बढ़ाती है।
तुम्हें चाहेंगे हम ताउम्र यह वादा हमारा है,
मगर तुम भी हमें चाहो यह बात सताती है।
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