मैं क्या जानूं
यौवन की दरकार है
दिल के धड़कने की
ये कैसी आवाज है,
चारों दिशाओं तक
जो सुनाई पड़ने लगी।
हुआ आज
ऐसा न जाने क्यों
जब से आँखें
उनसे चार होने लगीं।
बगावत में तार सरगम के
सारे गरजने लगे
लाख छुपाने की
कोशिश में
लाज की लाली
चेहरा भरने लगी ।
बिना बात मुस्कुराना
और चहकना सब की
नजरों में ही तो खटकने लगी।
भाई की नजर तिरछी हुई
बहन हुई चौकन्नी
मुस्तेद पहरेदार
शाम रोज दरबार लगाने लगी।
थमा दी माँ ने हिदायतों
की पोटली
हर आहट पर कान लगाये
अनिष्ट की
शंका से दहलने लगी।
लेकिन यह दौर का तकाजा
मौका मिला तो झाँका
देख कर तुझको
कुछ-कुछ समझने लगी।
सपना नहीं है यह सच है
उम्र है मौसम है
और है वक्त का तकाजा
अब जाने सीता मैया ही
तुम्हीं से क्यों लगन लगी।
©A