अब मिल भी जाओ इस पार
ढोल नगाड़े करते शोर
डाल-डाल चटके कचनार
रंग-बिरंगे सजे परिधान
फागुनाए से रंग हजार
अब मिल भी जाओ इस पार।
लोहड़ी जब दहकी-बहकी
ठुमके कई लगाए बहार बहकी
चुड़ी खनकी पायल देती ताल
आई लौट बसंत बहार
अब मिल भी जाओ इस पार।
आँगन घूम चुनरिया बहके
मन के कोने हरसिंगार दहके
पावन पुलकित सलिला बहती
छम-छम बरसे खुशी अपार
अब मिल भी जाओ इस पार।
त्यौहारों की झड़ी लगी
अंगड़ाई लेती कलियाँ जगी
आज ह्रदय खोले किवाड़
ऊड़कर चलें समंदर पार
अब मिल भी जाओ इस पार।
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