राज खुलवाये
बसंती रंग मुझे है भाये
जब भी आये सदा हंसाए
फागुन की फुहार में साजन
याद बहुत बहुत तुम आये।
बन जाये गर बात बताये
विश्वास पर भी राज छुपाये
करते हरदम ही मजबूर
कैसे तुझसे राज खुलवाये।
झरती पत्तियाँ, बिखरे फूल
भरती धरती आंचल सूल
नयन शयन में रहते ऊंघ
आ जाओ सब साजन भूल।
कर्म भूमि पर कब्जा कर
कर्ज पटाये फिरते मूल
फिर भी रह न पाते दूर
कैसे निखरे साजन बिन नूर।
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