ग़ज़ल
इस तरह अपनी बात को निभाना चाहिए,
कह कर नहीं करके भी कुछ दिखाना चाहिए।
दृढ़ता की नाव पर सवार जब कभी हुए,
परचम फतह का अर्श पे लहराना चाहिए।
फहराए जब भी द्वेष की ध्वजा तू संभल जा,
मुश्किल में दोस्त खुद को आजमाना चाहिए।
वादों को कभी भी न किसी शर्त पे रखो
हाथों में दिया हाथ ना छुड़ाना चाहिए।
प्रतिफल मिलेगा कर्म की वेदी पे ही चढ़कर,
गर आस्था हो दीप तो जलाना चाहिए।
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