रानी प्रभावती की सूझबूझ की अनोखी कहानी
प्रभावती गुप्त, गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री थी। उसका विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन द्वितीय के साथ 380 ई॰ के आसपास हुआ था। अपने अल्प शासन के बाद 390 ई॰ में रुद्रसेन द्वितीय की मृत्यु हो गई और 13 वर्ष तक प्रभावती ने अपने अल्प-वयस्क पुत्रों (दिवाकर सेन तथा दामोदर सेन)की संरक्षिका के रूप में शासन किया। दिवाकर सेन की मृत्यु प्रभावती के संरक्षण काल में ही हो गई और दामोदर सेन वयस्क होने पर सिंहासन पर बैठा। यही 410 ई॰ में प्रवरसेन द्वितीय के नाम से वाकाटक शासक बना।
उसने अपनी राजधानी नन्दिवर्धन से परिवर्तन करके प्रवरपुर बनाई। शकों के उन्मूलन का कार्य प्रभावती गुप्त के संरक्षण काल में ही संपन्न हुआ। इस विजय के फलस्वरूप गुप्त सत्ता गुजरात एवं काठियावाड़ में स्थापित हो गई।
रानी प्रभावती कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ रूप और गुणों की खान थी उस समय उनकी सुंदरता के चर्चे चारों ओर फैले हुए थे, वह जितनी सुंदर थी, उतनी ही कुशल शासक भी थी और निर्णय लेने में निपुण , अपने राज्य की सुरक्षा करना और अपने बच्चों को पालना उनका मुख्य उद्देश्य हो गया था।
उनके शासन का सुचारू रूप से चलना और उनकी सुंदरता का बखान यवन बादशाह को अक्सर सुनाई देता था उनके मन में लालसा जागी कि क्यों ना किन्नौर का किला जीता जाए और रानी प्रभावती को रानी बना लिया जाए।
अपनी मंशा को अंजाम देने के लिए यमन ने किन्नौर पर चढ़ाई कर दी । यह समाचार पाकर रानी प्रभावती बड़ी वीरता के साथ लडी। जब बहुत से वीर सैनिक मारे गए, और सेना थोडी रह गई, तब किला यवनों के हाथ में चला गया।
रानी प्रभावती इस पर भी नहीं घबराई और बराबर लड़ती रही। जब किसी रीति से बचने का उपाय न रहा तो वह अपने नर्मदा किले में चली गई, परंतु यवन सेना उनका बराबर पीछा करती रही। बडी कठिनाई से किले में घुसकर रानी ने किले का फाटक बंद करा दिया। यहां भी बहुत से राजपूत सैनिक लडते – लड़ते मारे गए।
यवन बादशाह ने रानी प्रभावती के पास एक पत्र भेजा, जिसमें लिखा था— सुंदरी! मुझे तुम्हारे राज्य की इच्छा नहीं है। मै तुम्हारा राज्य तुम्हें लौटाता हूँ। और भी संपत्ति तुम्हें देता हूँ, तुम मेरे साथ विवाह कर लो। विवाह होने पर मैं तुम्हारा दास बनकर रहूंगा।”
रानी को यह पत्र पढ़कर क्रोध तो बहुत आया, परंतु क्रोध करने से क्या हो सकता था, इसलिए उसने काफी सोच विचार कर यह उत्तर लिखा— “मुझे विवाह करना स्वीकार है, किंतु अभी आपके लिए विवाह योग्य पौशाक तैयार नहीं है। कल तैयार हो जाने पर विवाह होगा।”
अंधा क्या चाहे दो आँखें बादशाह खुशी से फूला नहीं समा रहा था वह इस बात से प्रसन्न था कि उसकी यह लड़ाई अब सफल होने जा रही है ।
दूसरे दिन रानी ने बादशाह के पास एक उत्तम पौशाक भेजकर यह कहलाया, कि इसे पहनकर विवाह के लिए शीघ्र आओ।
अपनी चाहत को अपनी ताकत से जीतने का गुरूर मन में पाले बादशाह रानी की भेजी हुई पौशाक को पहन कर बड़ी खुशी के साथ शादी करने की उत्सुकता लिए रानी के महल में आया।
रानी से सामना होते ही वह अपनी सुध बुध खो बैठा और उनके सौंदर्य में ही खो गया, वह सोचने लगा कि ईश्वर ने कितनी फुर्सत में इतनी सुंदर नारी का निर्माण किया है और यह अब मेरी होने जा रही हैं।
हल्की सी बेचैनी और उत्सुकता की अधिकता की वजह से वह यह समझ नहीं पाया कि उसे कुछ अंदर से घबराहट हो रही थी, बादशाह दर्द से व्याकुल हो गया, उसे मूर्छा सी आने लगी और उसकी आखों के आगे अंधेरा छा गया। पीड़ा से छटपटा कर वह चीखने लगा ।
रानी प्रभावती ने यह सब देखकर कहा “आज इस जीवन का अंत भी निश्चित हैं , किसी भी स्त्री को युद्ध में जीतकर पाया नहीं जा सकता, हा उसे बंदी बनाकर बरबरता की जा सकती हैं, कोई भी स्त्री अक्रान्ता के साथ खुशी- खुशी विवाह नहीं करेगी, इसलिए तुम्हारी मृत्यु के लिए विष से रंगी हुई पौशाक भेजी थी ।”
बादशाह जमीन पर गिर कर तडपता हुआ गगन भेदी चित्कार कर रहा था।
रानी प्रभावती ने एक तिरस्कृत नजर डाली ओर हाथ जोड ईश्वर से कुछ प्रार्थना की और किले पर से नर्मदा नदी में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।
धन्य हैं रानी प्रभावती, जिन्होंने आपने को सुरक्षित कर दुश्मन को भी समाप्त कर दिया। उनकी सूझबूझ और उनकी कार्यशैली इतिहास में दर्ज हो गई। हम ऐसी महान विभूति को सम्मान के साथ याद करते हैं।
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