रास्ते-वास्ते

बहारें खुशबू में
यह कैसी
महक भरी
सब पर
जादू की यह
कैसी छड़ी चली
आँखों में बसने लगे
प्यार के कस्बे
अनजाने में
छोड़ गया
कोई प्रीति के किस्से
डगर- डगर
यूं मचलता
क्यों भटक रहा मन
हर जगह
लगने लगे हैं
प्यार के मेले
बिना प्यार के सुने
जीवन के नगर
सारे एहसास और
उबड़-खाबड़ रास्ते
हमारे आपके वास्ते…।

© अंजना छलोत्रे

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