समर्पण की गूंज
मस्तिष्क मैं सोच का बवंडर उठ रहा है। हम कितने अनुभवहीन होते हैं, जीवन का अनुभव लेकर नहीं आते, आने वाली घटनाओं का अनुभव नहीं होता, हम बेटा बेटी या मां-बाप , दोस्त, रिश्तों का कोई क्लास लेकर नहीं आते, अतः हमें अनुभव नहीं होता कि किन-किन परिस्थितियों का सामना करना है और कैसे.. करेंगे।
ऐसे ही हमारा पालन-पोषण करने वाले माता-पिता, परिवार का अहम रोल होता है, लेकिन बुद्धि के विकास के साथ अगर हम अपना मानसिक संतुलन को बरकरार रखते हैं और समय को समझ जाते हैं तो हम अपने होने को स्थापित करने की ओर अग्रसर होते हैं, हर व्यक्ति किसी एक क्षेत्र का ज्ञाता नहीं हो सकता, सब में अलग-अलग प्रतिभा है उसी के तहत आने वाली चुनौतियों का सामना करना होता हैं, सफलता, असफलता का स्वाद चखना होगा, तभी तो जीवन आप को अनुभवी होने का खिताब देता है।
उसका सर चकरा कर रह गया, इतनी बड़ी गलती वह कैसे कर गई, कैसे उसके साथ घट गई, वह सोचती हुई पुनः आकर लेट गई, वह कैसा क्षण था कि वह बह गई और आज रांगोली को उल्टियाँ होने लगी, उसे एक ही बात का डर था कि कहीं वह…..
यह बात तो दोनों पर लागू होती है,अब इसमें विनायक कितना दोषी है,यह सोचना भी ग़लत है।
आज ही विनायक से बात करनी होगी, हम शादी करे, इतनी अधिक अधिरता है कि तुरंत इस समस्या का हल होना चाहिए वरना अनर्थ हो जायेगा, फिर सोचती अनर्थ क्या होगा,लोग क्या कहेंगे, परिवार में क्या-क्या सवाल उठेगें ,सब कुछ गडमड्ड हो रहा है , कुछ सुना सुनाया गूंज रहा है, फलां की लड़की, फलां की बहन के किस्से, हवा मैं गूंजते, चीर देने वाले वाक्य, वह घबराकर कान को हथेली से ढाँक लेती है, लेकिन आवाज आना बन्द कहाँ हो रही है, यह आवाजें तो मस्तिष्क मैं हथोड़े से दनादन वार कर रही है, यह तो उसके अन्दर की शल्यक्रिया है जो अन्दर मार काट ओर चीर फाड़ मचाये हुए हैं, इससे पीड़ा से कैसे बच पायेगी। शर्म, हया घुंघट निकाले मुँह छुपाते कोने में बैठी है और बेशर्म हवायें ठठ्ठा मार कर हंस रही है, क्या करें रांगोली, कुछ सूझ ही नहीं रहा है।
अब करें भी क्या, अरे प्यार करता है वह मुझसे,ओर मैं उससे, यह बात है कि हमने कसमे वादे किए हैं कि जीवन एक साथ गुजारेंगे, किंतु अपने परिवारों की सहमति के साथ, फिर अभी तो घर वालों से बात भी नहीं हुई है, क्या पता उसके व मेरे घरवाले माने भी या नहीं।
बहुत देर तक वह इसी उधेड़बुन में लगी रही कि कैसे इस समस्या से निपटा जाये, हालांकि परिस्थितियाँ अनुकूल होती तो यह क्षण अपनी मधुर स्मृति में हमेशा कैद कर लेती, किंतु आज यह बात उसे चिंतित कर रही है, लग रहा है किसी बड़े जाल में फंस गई है।
सोच- सोच कर उसके दिमाग की नसें चटकने लगी, अब पलंग पर लेट पाना मुश्किल है, वह टहलने लगी, अक्सर अपनी समस्या से तीन-चार दिन जूझती है, तभी वह नतीजे पर पहुँचती है, इसके पहले न तो वह अपनी समस्या किसी को बता पाती है और न ही सलाह लेने की स्थिति में रहती है।
रांगोली यहाँ लोक निर्माण विभाग में इंजीनियर के पद पर कार्यरत हैं, वही विनायक भी सिंचाई विभाग में एस डी ओ है। दोनों की दोस्ती काम के सिलसिले में हुई और वह धीरे-धीरे एक दूसरे के अंतरंग हो गए।
विनायक हमेशा ही विश्वास दिलाता रहा है कि वह शादी उसी से करेगा, रांगोली भी लगभग विनायक की तरह ही सोच कर चल रही थी। एक दिन दोनों अपनी सीमाएं पार कर गए, हालांकि रांगोली को अफसोस हुआ, किंतु उसने अपने को भी उतना ही दोषी माना और बात सामान्य हो गई, उसके बाद और भी नजदीक आ गया था विनायक, हरदम रांगोली का ध्यान रखता, मनो कांच का खिलौना हो जो जरा से धक्के से टूट कर चूर-चूर हो जाएगा।
रांगोली भी अपने प्यार पर रस्क करती, सोचती कितनी किस्मत वाली है जो विनायक जैसे अच्छे इंसान से उसे प्यार हुआ है, उस व्यक्ति को इतना बड़ा झटका कैसे दें, कि हमारी भावुकता का नतीजा क्या निकला है ।
चार दिन तक वह सोच-सोच कर बेहाल हो गई, फिर वह निर्णय पर पहुँची, ऑफिस गई, वहाँ उसने अपने ट्रांसफर की अर्जी दी और घर आ गई। एक ही बार के अनुरोध में उसका ट्रांसफर हो गया, उसने दूर के ऐसे स्थान को चूना कि वहाँ कोई जाना नहीं चाहता और यदि किसी का ट्रांसफर हो जाए, तो वह जी तोड़ कोशिश कर रुकवाने में लग जाता है, ऐसे में किसी का ऐसी जगह पर ट्रांसफर तुरंत होना बड़ी बात नहीं थी।
विनय ने काफी विरोध किया, किंतु रांगोली ने असमर्थता जता कर जाना जरूरी बता दिया।
विनायक ने रांगोली में आए बदलाव को देखा, किंतु ट्रांसफर हो जाना और उससे दूर जाने की वजह को वह सहज उपजा तनाव समझ वह रांगोली को संभालता रहा।
निश्चित दिन आँखों में ढेरों आँसू भरकर, आँचल में अनगिनत वादे लेकर, रांगोली विदा हुई, विनायक की तो दुनिया ही वीरान हो गई ।
जैसे तैसे दोनों रहना सीख रहे हैं, फोन पर घंन्टों बातें होती, कुछ समय बाद रांगोली ने अपना ट्रांसफर पुनः दूसरी जगह करा लिया, यहाँ का पता वह विनायक को नहीं देना चाह रही है, बहुत विचार करने के बाद रांगोली ने नहीं बताया की वह दूसरी जगह तबादला ले रही है।
आठ माह हो गए हैं, रांगोली में बदलाव स्पष्ट नजर आने लगे, नई जगह नेटवर्क की परेशानी ने रांगोली को बहुत मदद हो गई।
विनायक ने नेटवर्क न मिलने की वजह तलाशी, तब पता चला कि फोन दूसरी जगह है। रांगोली के ऑफिस से पता लगा लिया कि किस स्थान पर रांगोली है, उसका ट्रांसफर दूसरी जगह हो गया है।
अब विनायक के सोचने का विषय था कि रंगोली ने अपने ट्रांसफर की बात उसे क्यों नहीं बताई। जरूर कोई न कोई ऐसी बड़ी बात है जो उससे छुपा रही है बहुत उधेड़बुन के बाद उसने एक निर्णय लिया।
एक दिन सुबह सवेरे घर की घंटी बजी तो पलंग से अलसाई सी रांगोली ने दरवाजा खोला, सामने विनायक, वह चकराकर रह गई, उसे देखकर विनायक भी अचकचा गया, उसने कभी सोचा नहीं था कि इस हालत में रांगोली से सामना होगा, एकटक वह रांगोली को निहारता ही रह गया। बहुत से सवालों के जबाव आपस में ही उलझते रहे, दिल, दिमाग में जलजला पसर गया, जड़ हो गई काया और आँखें पथरा गई। बहुत से पल सरक गये, अन्दर का द्वन्द जरा कम हुआ, तब विनायक सम्हला।
“अंदर आने को नहीं कहोगी,”… विनायक का ठंडा स्वर सुन रांगोली सहम गई।
रास्ता छोड़ दिया
विनायक अन्दर आकर बहुत देर तक बिना कुछ बोलें यूँ ही गुमसुम बैठा रहा, रांगोली दरवाजे पर ही खड़ी रह गई। एक दूसरे से बात नहीं हो रही है लेकिन दोनों के अन्दर का तूफान का स्वर कानों में नगाड़े बजा रहा है।
बहुत देर बाद विनायक उठा, रांगोली के नजदीक जाकर दोनों कंधे थाम उसे सोफे पर बैठाया । खुद रांगोली के कदमों में बैठ गया । कुछ देर रांगोली को निहारता रहा, धीरे से अपना सर रांगोली की गोद में सर रख दिया ।
रांगोली की रुलाई फूट पड़ी, विनायक ने उसे चुप नहीं कराया और न ही कोई सांत्वना दी, वह तो खुद कभी यह विश्वास नहीं कर सकता था कि रांगोली का यह गुण उससे छुपा था, जिसे वह पहचान नहीं पाया, उसे तकलीफ न पहुँचे इसके लिए रांगोली स्वयं जुझती रही, इतना धैर्य तो उसमें भी नहीं है ।
बहुत देर रो लेने के बाद रांगोली सम्हली, विनायक की कोई प्रतिक्रिया नहीं होते देख, डर का भाव उपजने लगे। अंदर की बैचैनी बढ़ने लगी, विनायक से छुपाकर कुछ ग़लत तो नहीं कर दिया।
“आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे विनायक,”…कुछ देर बाद सर को सहलाते हुए धीरे से रांगोली बोली।
“क्या बोलूँ, मैं तो सुन रहा हूँ,”…विनायक ने रांगोली के उभरे हुए पेट को सहलाते हुए कहा।
“क्या सुन रहे हो?”…होले से पूछा रांगोली ने।
“तुम्हारे, प्यार की भाषा, जहाँ मौन समर्पण की गूंज है,”…विनायक ने रांगोली का चेहरा हाथों में लेकर, ललाट चुमते हुए कहा।
“विनायक’ मैं भी कुछ महसूस कर रही हूँ,”…रांगोली ने भी साहस कर कह दिया।
“क्या…?”
“तुम्हारे विश्वास की गहरी पैठ को, बिना कुछ पूछे-जाने मुझ पर विश्वास कर लेने की समझदारी को,”… रांगोली का गला भर आया।
“आने वाले इस नन्हे से मेरी बात हो गई, उसने मुझे अपना होने का सबूत दिया है,”…कहते हुए विनायक ने रांगोली को बाहों में भर लिया।
यह दो प्रेमियों के बीच का अंतरंग क्षण होता है, जब दोनों के मन में कभी उमड़े-घुमड़े सारे सवाल लाजवाब हो जाते हैं और एक दूसरे से कैफियत लेने का तो तब सवाल ही नहीं उठता, जहाँ गहराई मैं बैठी विश्वास की जड़ें मौजूद हो, वहाँ बड़े से बड़े बबन्डर धाराशाही हो जाते हैं, उपजती है तो नई शुरुआत के सुनहरे पल छिन।
© अंजना छलोत्रे