अमृत मंथन

सोहन को पुनः विचार के लिए कह कर विभा आगे बढ़ गई, सोहन बुत बना खड़ा रह गया ।

“पुनः मूल्यांकन के लिए बाध्य होता सा लग रहा है, कोरी भावुकता मैं जीवन नहीं चलेगा, सब हो जायेगा कहना आसान है लेकिन सच तो वह भी जानता है कि कैसे सब ठीक होगा….स्पष्ट था कि विभा की बात सोहन को चुभी तो पर सच भी तो है।

विभा का उद्देश्य भी यही हैं, कि वह अच्छी तरह सोचे। शादी का मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है । वह विचार करें, भावनाओं के ज्वर से परे हटकर निर्णय ले, जिससे बाद में अपने निर्णय पर उसे पछताना न पड़े ।

विभा की स्थिति न निगलने की थी,  न उगलने की,  बीच भवर में बैठ कर किनारा तलाशना बहुत कठिन काम है, यह वह आज माँ के आखिरी आदेश पर समझ पा रही है।

लेकिन कशमकश के बीच पता नहीं क्यों उसे लगा, यह इंतजार सुखद क्षणों की आहट लिए हैं जो तन मन में स्फूर्ति बनाए हैं, नये जीवन की एक उजली किरण फूटती सी साफ दिखाई दे रही है।

दोनों तरफ ऊपर से शांत चित्त हैं , लेकिन अंदर तूफान उमड़-घुमड़ रहा है, जो शांत होगा तो परिणाम देगा, जाने क्या ?
                                             
©अंजना छलोत्रे
                                       

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