लौट आए वह दिन Returned that day

बहुत समय से मिटिंग में कुछ लोग आ ही नहीं पा रहे हैं। कारण भी तो है योजनाएँ बहुत बन रही है लेकिन अभी कोविट है कुछ समय ठहर के आयोजन करते हैं कहते-कहते दो वर्ष तो हो ही गये।

लगभग सभी संस्थानों की यही हाल है वह साहित्य क्षेत्र हो या व्यवसाय, नौकरी परेशान हो या धंधे वाले, सबकी तो एक ही सी परिस्थितियाँ, सब अपने अपने घरों में कैद, लेकिन इससे एक बड़ा फायदा यह हुआ कि लोग सोशल मीडिया और नेटवर्किंग के मास्टर हो गए और क्योंकि मनुष्य का दिमाग है फिर कही से कही तक पीछे नहीं है तरह तरह के वीडियों बनाये जाने लगे, लोगों ने मैसेज करना छोड़ दिया और जिस तरह वीडियो की दीवानगी बढ़ी है उसमें अपनी कला का प्रदर्शन करने से भी नहीं चूके।

एक समय तक हर चीज में मन लगता है इसके बाद उसका उत्साह भी कम होने लगता है और जो वर्षों से चली आ रही आदत है जब तक आपका लोगों से मेलजोल नहीं आप का मन ही नहीं लगता।

आज पार्क में मनिंदर सिंह को भूपेंद्र मिल गये, पहले तो दोनों ने नमस्ते की और खड़े होकर एक दूसरे को निहारते रहे।

“ओए भूपेंद्र, तरस गये भाई तुम्हें देखने-सुनने को,”…

“हां मनिंदर जी, आप कैसे हो परिवार में सब ठीक है,”…

“हां सब ठीक हैं भूपेंद्र, जिंदगी ने यह उलट फेर क्यों किया समझ पाना मुश्किल है, इतिहास साक्षी है, युगों युगों से एक लम्बी श्रृंखला चली आ रही है कि हर युग कुछ समय को अपने समय चक्र को बहका देता है और जो उलट फेर होता है उसे उस समय के लोगों से लेकर प्रकृति के तमाम पात्रों को भुगतना ही होता है।”… मनिंदर ने आपने मन की बात कही।

“फिर किस बात का मलाल मनिंदर, हमें खुश होना चाहिए क्योंकि हम पृथ्वी पर होने वाले उस युग परिवर्तन के दौर मैं अपनी भागीदारी कर रहे हैं और किस तरह युग परिवर्तन होता है उसे देख पा रहे हैं।”…भूपेंद्र ने अपने को ही सांतवना देते हुए सा कहा।

“हां, इस दौर में हमें यह तो सिखा ही दिया कि हम अपनों के महत्व को समझ सके, हम अपने भविष्य को सुरक्षित बनाने में कामयाब हो रहे थे, वही परिवार को प्राथमिकता नहीं दे पा रहे थे, इस दौरान अपनों के चले जाने का दर्द, आज हम उन्हीं को देखने और महसूस करने के लिए तरस रहे हैं।,”… मनिंदर के मन की पीड़ा झलक रही है।

“सही है जी, बहुत बहुत आकांक्षाओं ने जो शोर मचा रखा था एक झटके में जमीन पर ढेर हो गये, अपने आचरण का जब स्वयं मूल्यांकन करना पड़ा तो खुद की आदतों से चिढ़ होने लगी, बर्बादी का आलम यह है कि घर को गोडाउन बना दिया, ओर जीभ के चटखारे ने शारिरिक अस्थिरता का बहुत बड़ा केन्द्र बना लिया।”… भूपेंद्र भी कुछ न कर पाने की भड़ास भरे स्वर मैं बोला।

” हां भूपेंद्र, आज अपने ही अपराधी बने खड़े हैं, ओर माफी के बतौर काढ़ा ओर काली चाय की सजा इमानदारी से खुद को दे रहे हैं।,”… मनिंदर ने माहौल को हल्का करने की गरज से कहा।

दोनों के होंठों पर मुस्कान तैर गई। बहुत दिनों बाद इस तरह नील गगन के नीचे खड़े होकर और अपने पसंदीदा पार्क में दोनों मिल पा रहे हैं।

“जनाब, युग परिवर्तन के साथ-साथ अपने ह्रदय का भी तो परिवर्तन हुआ है जरा उधर भी तो गौर करें, हम स्वस्थ तो ही जग स्वस्थ।,”… दोनों ने खुल कर ठहाका लगाया।

सुखद पलों के दिन लौट रहे हैं, इन्हें कैसे सहेज ले यह हम पर निर्भर करता है।

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2 thoughts on “लौट आए वह दिन Returned that day

  1. शानदार और जानदार पेशकश मैडम। मानवीय संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने के हुनर आते हैं आपको। लिखते रहें, दिखते रहें। अच्छा लगा कि आपकी लेखनी लोगों की मन की बात को सरल, सहज और सटीक शैली में प्रस्तुत है। धन्यवाद।

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