लौट आये हम

हम पगडंडी छोड़
सड़क पर चले थे
इस आशा से कि
हम बहुत ऊँचाइयों तक
पहुँच जाएँगे और फिर
कभी पलटकर इन
पगडंडियों पर नहीं आएँगे
पर हाय रे किस्मत
अब निराश से थके हुए
लौटते पगडंडी की और
हमारे कदम दुगने
उत्साह से पढ़ रहे हैं
विश्वास है वह पगडंडी तो
हमें आज भी मानेगी
हमारी आहट पहचानेगी
हमारे चलने पर कभी
बुरा भी नहीं मानेगी
और दरवाजे पर
खड़े होंगे हमारे अपने
जो हमें देखने के लिए
तरसते रहे हैं
हमें पालने में अपने
जाने कितने अरमान
छोड़ दिए हैं
वह पहले भी हमारे
इंतजार में थे
हमारे लिए बाहें फैलाए
वह आज भी खड़े हैं
यह हम आज ही
समझ पाए हैं
यह छोटा सा घर ही मेरा है
ममता की छांव में
बस्ता यहाँ डेरा है
यही मेरा अकाश
और यही मेरा बसेरा है।।

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