सीलन भरा Dampened

सारे सपने ही तो भावना ने बेटी सुरीली से पूरे होंगे की आश लगा ली थी, परिस्थितियों के चलते जो भावना नहीं कर सकी, वह बेटी के द्वारा पूरे होते देख कर कलेजे को ठंडक पड़ जाती, भावना को संतोष हो जाता की जो वह नहीं कर पाई, सुरीली की तमाम इक्छा पूरी कर के सकून पा जाती है।

सरपट भाग रहे जीवन में अचानक से सब कुछ थम गया, सुरीली ने ऐसा कदम उठाया की भावना का सारा संसार ही हिल गया, कितनी-कितनी अभिलाषाएँ पाल ली थी,जीवन की भाग दौड़ में एक दिन सब कुछ थम गया, भावना सकते मैं आ गई, इस घोर विपत्ती में वह मानसिक संतुलन खोने की कगार पर पहुँच गई।

भावना कभी यह बात स्वीकार ही नहीं पाई की सुरीली ने गलत कदम उठाया, वह जानती है कि इतनी संवेदनशील, ओर छोटी-छोटी बातों में घबराने वाली सुरीली, अपने होशोहवास में आपने को खत्म करने की बात सोच ही नहीं सकती, लेकिन विधी का विधान देखिए, मासूम सुरीली ने सब से एक झटके में रिस्ता तोड़, अनंत आकाश में जा मिली।

घर दुःख से लवरेज हो गया, तरह तरह के सहानुभूति के शब्द भावना के कानों में पिघले शिशे से उतर जाते।

“ऐसे कैसे हिम्मत कर गई, कुछ समझ नहीं आ रहा,”..छोटी बहन बोली, दुख का कोई ओर-छोर भी तो नहीं था।

औरों की तरह उलाहना नहीं दे पाईं भावना, कि तुम होती तो घर भरा होता, किस मुँह से समाज में रह पाऊँगी, नाक काट दी, कैसे सामना करूँगी जैसे ख्याल कभी नहीं आया, ऐसी बातों में उसे अपने स्वार्थ कि ही बू आती, इसमें बेटी सुरीली की इच्छा कहाँ है, उसकी तमन्ना तो यहाँ से विदा होने की थी तो वह चली गई। भावना तो यहाँ तक सोचने की हालत में ही नहीं थी। हमेशा लगता उससे ही चूक हुई है।

क्यों, कैसे, क्या कारण हो सकता है जैसे अनसुलझे सवाल, जिनका जवाब किसी के पास नहीं है।

सुरीली, भावना से हर बात कह देती है कुछ भी छुपाती नहीं, का भ्रम भरभरा कर ढह गया, भावना को सुरीली को न समझ पाने का दंश है, अपने पर ही लानत दे रही है कि कैसी मां है जो अपने ही शरीर के हिस्से में इतनी उथल-पुथल मची रही और उसे भनक तक नहीं लगीं।

भावना को सम्हालना बहुत मुश्किल होता जा रहा है, मानसिक संतुलन बिगड़ने लगा। पति और बेटा समझ नहीं पा रहे हैं कि किस तरह भावना को इस दुख से उबारकर सहज करें। बात तो करनी ही होगी।

“भावना, मेरी भी बेटी है सुरीली, सुबोध की बहन है, तुम यह क्यों नहीं सोचती कि जिस भी माध्यम से गई सुरीली, यह मायने नहीं रखता है, बचपन से आज तक जैसा हम ने चाहा, सुरीली ने वही तो किया था, एक निर्णय यदि उसने अपनी मर्जी से लिया तो गलत क्या है, हमें उसके निर्णय का सम्मान करना हैं, उस पर दोषारोपण नहीं करना है, तुम्हारे इस तरह के विलाप से वह दुःखी ही होगी, भावना, अपने को सम्हालों ओर बेटे के रुप में अभी हमारे पास एक धरोहर ओर है उसे सहेजो,”.. भावना को दुख से उबारने,ओर सुबोध को उपेक्षित होता देख एक दिन सुरीली के पिता बोले।

भावना दर्द के दल-दल से निकलकर बेटे को निहारने लगी, बेटे के मलिन चेहरे ने झकझोर दिया, जो पास है उसे अनदेखा कैसे कर सकती है, फिर सुरीली के पिता ने जो कहा उससे सोच की एक नई शाखा खुल गई, बहुत सम्हालने का प्रयास करती है,

बहुत कोशिश करने के बाद भी भावना, सुरीली के बिछोह के दर्द से कराह उठती, यादें दामन कहा छोड़ती है, उम्र चुकने तक यह ज़ख्म साथ जायेगा, अंतर्मन अब सीलन भरा ही रहता है, आँसू जो अविरल रिसते रहते हैं।

©A

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *