ग़ज़ल

हम हैं रूठे तो मना लो हमको,
हँस के सीने से लगा लो हमको।

आरज़ू कह रही है दिल की ये
आज वादों से न टालो हमको।

हट गए राह के पत्थर देखो ,
अपने दिल में तो बिठा लो हमको।

बेसबब रूठने से क्या होगा ,
साथ चलकर ही मना लो हमको।

करके इजहारे वफ़ा क्या पाया ,
हो सके दिल से निकालो हमको ।

जिस तरह तुमने सँभाला था कल,
आज फिर आ के सँभालो हमको।

कह रहा दिल ये सनम दीवाना,
जिस तरह भी हो निभा लो हमको।

दर्द बढ़ने लगा है हद से अब,
टूट जाएँ न बचा लो हमको ।

©A

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