ग़ज़ल
मोहब्बत का रोशन सितारा हुआ,
मिलन जो हमारा- तुम्हारा हुआ।
हमी ख्वाब में बात करते रहे,
न उनकी तरफ से इशारा हुआ।
सुबह -शाम चौखट तेरी थाम कर,
कि रोया मेरा दिल यह हारा हुआ ।
उसे ही ज़माने की नफ़रत मिली
जो तेरी निगाहों को प्यारा हुआ।
उसी रात दुश्मन दग़ा कर गया,
उसी दिन तो था भाईचारा हुआ।
सरेआम मुझको कहा बेवफ़ा
हमें बस यही न गंवारा हुआ
ज़माने ने हमको सताया बहुत
तेरे दर्दो-ग़म का सहारा हुआ।
तुझे छोड़कर और जाये कहाँ
तेरी बेरुखी का जो मारा हुआ।
हमें ज़ख्म देकर लगाते हैं मरहम
बुरा हाल आख़िर हमारा हुआ।
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