ग़ज़ल
बहर
1222,1222,122
स्वरों से हम ये बंदिश कर रहे हैं,
हुनर अपने ही पॉलिश कर रहे हैं।
ये बेआवाज सी चोटों से बचकर,
लगायें दिल ये कोशिश कर रहे हैं।
रहे मन में करम का यह घरौंदा,
सितारे मेरे ग़र्दिश कर रहे हैं।
सहेजीं बंदिशें रिश्तों की हर दम,
अभी तक नेह-मालिश कर रहे हैं।
उगे रिश्तों की हदबंदी पे कांटे,
बदन पर यार खारिश कर रहे हैं।
गुज़ारी उम्र और अनुभव बटोरे,
न कुछ छूटे गुज़ारिश कर रहे हैं।
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