(4) मेरे घर आना जिंदगी Come to my home life
बेटे की स्थिति से असहाय की परिधि से घिरी भाग्य की मारी माँ की शक्ति धीरे-धीरे क्षीण होने लगी, हाथ-पैर ने साथ देने से मना कर दिया तो वहीं सलाखों को पकड़कर बैठ गई, अब शब्द बुदबुदाहट में निकल रहे हैं, बेटा सब ठीक होगा…, कुछ नहीं हुआ है…, कुछ नहीं केश्वर की सांसें अटकने लगीं।
केश्वर के सारे शरीर का खून जम गया, हाथ से खाने का डिब्बा दूर जा गिरा, रतन को दी जा रहीं पुलिस वाले की गालियाँ जब केश्वर को सुनाई दी तो वह चेतन अवस्था में वापस आई।
“साबजी उसे कुछ मत कहो! मुझे सजा दे दो, लेकिन रतन को कुछ मत कहो साबजी, उसका कोई कसूर नहीं है, उसकी कोई गलती नहीं है साबजी ए साबजी।”…हाथ जोड़कर बोली ।
“चलो वहाँ दूर बैठ जाओ, अभी गला दबा देता तो नौकरी मेरी चली जाती,”…खाने का डब्बा उठाते हुए पुलिस वाले ने कहा।
“ले खाना खा ले चुपचाप, वरना इतना मारूँगा कि गिनते नहीं बनेगा।”.. पुलिस वाले ने कहा।
रतन तिरस्कार भरी नजरों से माँ को घूरे जा रहा था, केश्वर दूर बैठी उसे हाथों के इशारे से शांत रहने का कह रही है।
“बेटा मैं तेरी पसंद का खाना बना कर लाई हूँ, तू खा ले, देख गुस्सा नहीं करते, सब ठीक हो जाएगा बेटा!”…कुछ देर बाद जब रतन के गुस्से का ज्वर शांत हुआ तो केश्वर ने स्नेह से कहा।
रतन ने आग उगलती आँखों से भस्म कर देने वाले अंदाज में माँ की तरफ देखा और घृणा से मुँह फेर लिया।
केश्वर के दिल के टुकड़े-टुकड़े हो गए, जिंदगी की तमन्ना पहले भी नहीं बची थी, अब तो बेटे के मोह से भी दामन छूटता सा लगने लगा, आंसूओं की झड़ी में रतन का चेहरा धुंधला हो गया।
हर पल एक मौत से सामना हो रहा है। सुबह घर से निकलते वक्त रतन के इस रूप की उसने कल्पना भी नहीं की थी, वह तो बेटे का मुँह देखने के मोह में कुछ सोच ही नहीं पाई, क्या करें, वह आंचल में गिरते आँसुओं को खुद ही समेटती बैठी रही।
थोड़ी देर बाद पुलिस वाले ने डण्डे से सलाखों पर जोर से वार किया, आवाज के साथ ही केश्वर चौंक गई, पुलिस वाला रतन से टिफिन खाली करने का कह रहा था। डण्डे की आवाज से डरकर ही रतन ने पास रखी एल्यूमिनियम की तस्तरी में खाना उड़ेल दिया टिफिन बंद करके सलाखों के पास रख दिया।
कल्याणी को लगा कि उसके तपते मन पर किसी ने पानी के छीटें मारे हो, कम से कम रतन खाना तो खा लेगा।
“लो अम्मा, अपना डब्बा और जाओ यहाँ से,”…पुलिस वाले ने बोला।
केश्वर ने खाने का डिब्बा उठाया, एक नजर रतन पर डाली वह आँखों से अंगारे टपका रहा है, बुदबुदाने का सिलसिला शुरू है।
अब तो रतन की पिटाई तो लाजिमी थी, थाने के अंदर मर्यादा का ख्याल रखे बगैर रतन ने गालियाँ जो दी हैं, पुलिसवाले ने रत्न को सलाखों से बाहर निकाल कर डण्डे से उसकी पिटाई शुरू कर दी।
“मत मारो साब, हम मर जायेंगे साब,”…रतन जोर-जोर से चिल्लाने लगा।
केश्वर यह देख रो-रो कर बिखरने लगी, कभी पुलिस वालों के हाथ जोड़ती, पैरों पर गिरती,कभी रतन को बचाने का असफल प्रयास करती, बेटे का प्यार फूट-फूट कर आँखों से बहने लगा दुनिया उजड़ने लगी।
“बुढ़िया टिफिन मिल गया न अब निकल यहाँ से,”… पुलिस वाले ने धकेलते हुए केश्वर को थाने से बाहर कर दिया। रतन का सारा शरीर डण्डे की मार से नीला पड़ता जा रहा है।
केश्वर की पूरी तपस्या पर पानी तो रतन द्वारा कत्ल किए जाने के दिन ही फिर गया था, लेकिन आज उसके जीवित होने और माँ होने के प्रमाण पर भी प्रश्न चिन्ह लग गया। उसकी अंतरात्मा का आलम यह है कि, न तो सोच पा रही है, न ही साथ दे रही है, बस सब तरफ शुन्य, हर जगह उसे शुन्य के अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा है।
बेख्याली में आगे बढ़ रही केश्वर का एक-एक कदम मनों भारी हो रहा है। गाँव में घुसते ही सामने डोरा दिखाई दे गई, केश्वर को अब टिफिन का वजन भी इतना अधिक लग रहा था कि हाथ के बंधन ढीले पड़ने लगे और खाने का डब्बा छूट कर दूर जा गिरा।
डोरा दौड़कर पास आई, केश्वर का शरीर लहराकर जमीन पर गिर गया।
“काकी- ओ-काकी…।” डोरा ने जोर जोर से आवाज लगाई । डोरा हिला डुला कर काकी को जगाने की कोशिश करती रही।
डोरा को मालुम है कि रतन ने काकी को हरिया से उसे बचाते हुए चाकू लगा था, इतना संस्कारवान रतन ने आपना मुँह नहीं खोला होगा, वह एक औरत को बदनाम नहीं कर सकता, रतन, काकी तो चली गई लेकिन डोरा कैसे जीयेगी, ह्रदय विदारक चिखों से आकाश भी दहल गया। गाँव उमड़ आया।
ऐ जिन्दगी, ठहर तो जा, इस तरह न तोड़ के सारे बंधन न जा। केश्वर तो इस पिंजरे रूपी शरीर से आजादी ले चुकी है। माँ तो अनंत में समा चुकी थी, लेकिन उसकी ममता हवालात में बंद बेटे के आस-पास ही मँडरा रही है।
(3) मेरे घर आना जिंदगी Come to my home life
समाप्त…
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