(3) मेरे घर आना जिंदगी Come to my home life

थाने के सामने पहुँच कर केश्वर की रूह कांप गई। एक तरफ दहलान में कुछ पुलिस वाले कुर्सी पर बैठे हैं, उनके कदमों में दो रतन की उम्र के लड़के हाथ जोड़े कुछ कह रहे हैं, याचना का भाव स्पष्ट नजर आ रहा हैं। कंधे पर लाल फीता बंधे मुंशी के हाथ में लोहे का डण्डा है। वह उठाकर उसने जब याचना कर रहे लड़के के कन्धे पर मारा तो युवक की कराह, के साथ-साथ केश्वर की भी आह निकल गई।

रतन की इसी तरह पिटाई का ख्याल आते ही कलेजा मुँह को आ गया, घबराहट व बैचेनी में रतन को देख लेने की तीव्र इच्छा के उठते ही उसने थाने के अंदर कदम बढ़ाया, द्वार पर पुलिस वाले ने केश्वर की बदहवास स्थिति को देखकर तिरस्कार भरी नजर फेंककर कड़क कर पूछा-

“किससे मिलना है?”

“साबजी, रतन से,”…केश्वर की आवाज भर्रा गई।

“ उसकी कौन हो तुम?”

“मैं माँ हूँ उसकी साबजी,”…

“तो तुम हो उसकी माँ, ऐसा कातिल पैदा किया!”

“मेरा बेटा नासमझ है, ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं है न, इसीलिए उसे अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं है, वो क्या जाने अपराध क्या है जरूर कुछ और बात है साबजी, मेरा बेटा निर्दोश है, उसे छोड़ दो साहिब, माँ कब चाहती है कि उसका बेटा कातिल बने,…

जन्म देने वाली माँ का हृदय कितना दयालु और स्नेहिल होता है कि बार-बार उस पुलिस वाले से वह यही बात कह रही है।

“बस-बस रहने दो, काहे को आई हो ?”

“रतन से मिलने साबजी, घर से उसके लिये खाना बना लाई हूँ, उसे अपने सामने खिला दूँ?”…याचना से भर गया केश्वर का स्वर।

“खाना-खिलाऊगी, डब्बा खोलो, क्या लाई हो देखूं ?”…कड़कदार आवाज में आदेश भरा स्वर गूंजा।

 केश्वर खाने का डिब्बा खोल देती है।

“ पहले तुम खाना खाओ, पता नहीं जहर न मिला लाई हो”

केश्वर के भीतर अंदर तक पिघला शीशा सा उतार गया यह शब्द, लगा दिल को गरम सलाखों से आर-पार छेद दिया गया हो।

भरे गले से केश्वर ने एक गस्सा खाया तो मन किया जहर मिला लाती तो उसके दुखों का तो अंत आज ही हो जाता, भरे गले से निवाला अंदर जाने का नाम नहीं ले रहा है, पुलिस वाला उसकी ओर बाज सी नजर गड़ाए देख रहा है।

पांच मिनट बाद कहीं जाकर उसने केश्वर को रतन तक पहुँचाया। उसके पहले उसकी पूरी तलाशी ले ली गई।

सलाखों के पीछे रतन एक कोने में घुटनों में सिर रखे बैठा है। केश्वर का कलेजा मुँह को आ गया, उसके लाल का यह हाल देखकर उसका मन फूट-फूट कर रोने का हो आया, भर आई आंखों से निहारते हुए रतन को पुकारती… “रतन ऐ रतन”

घुटनों से सिर उठाकर रतन माँ की तरफ देखता है, मलीन चेहरेपर कुछ क्षणों में ही कठोरता छाने लगती है, वह झटके से खड़ा होता है और सलाखों के पास आकर माँ का दोनों हाथों से गला पकड़ लेता है।

“तुम ही हो मेरे इस हाल की जिम्मेदार, मुझे इंसानियत और नेकी का सबक सिखाती रही दुनियादारी नहीं सिखा सकी, देखों तुमने मुझे कहाँ पहुँचा दिया मां।”…बुरी तरह झकझोड़ते हुए बोला रतन।

केश्वर आज बेटे के हाथ मौत आ जाए की दुआ मनाने लगी, पता नहीं कहाँ उसके संस्कार में कमी रह गई, उसी की नींव इतनी कमजोर थी तभी तो रतन परिस्थितियों के सामने भरभरा कर ढेर हो गया, उसे अपने अच्छे संस्कारों का जरा भी ख्याल नहीं आया, इस बूढ़ी मां की जीवन भर की साधना, तपस्या को ताक पर रख दिया उसने।

फिर एक पल में ही केश्वर को लगा उसके संस्कार ही तो थे तभी वह गलत बात सहन न कर सका, अन्याय के खिलाफ वह उत्तेजित हो उठा और नतीजे का ख्याल भी नहीं किया, उसे तो अपने बेटे के निर्णय पर गर्व होना चाहिए, लेकिन पता तो चले वह किस बात पर यह कृत्य कर गया।

गले पर कसाव बढ़ा तो वह पुनः वहीं लौट आई। गले को छुड़ाने का कोई प्रयास न करती देख थाने में उपस्थित एक पुलिस वाला अनायास ही भाव विभोर हो उठा, पुलिस वाले ने लपक कर केश्वर को छुड़ाया, पर जो कुछ वहाँ बैठे अन्य पुलिसवाले देख रहे थे वो मंजर ही कुछ और था। अपराधी बेटा अश्लील गालियों से सृष्टि की जननी माँ पर प्रहार कर रहा है।

केश्वर बार-बार बेटे के सिर पर हाथ फेर कर उसे शांत करने की चेष्टा कर रही है, और उस घृणित वार्तालाप के मध्य अपनी बात कह रही थी –

“रतनवा बेटा, मेरी बात सुन, तेरे लिए तेरे पसंद का खाना लाई हूँ, खा ले बेटा, सब ठीक हो जावेगा तूने कुछ नहीं किया है, मैं साबजी से बात करूँगी,”…

(2) मेरे घर आना जिंदगी Come to my home life

क्रमश:…

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