Doshala दोशाला
दोशाला
फूली फली रहे हरदम
बेल प्रति कि महके
फिर आ जाओ
तुम मेरे अंगना
जो कहना हो
कह दो प्रियतम
मन में न कुछ
तुम रखना
रंग-बिरंगे उपवन से
कभी न चुराना
हंसना खिलना
मेरे ठौर पल दो पल
बैठ जा आके
देखूँ तेरा कपड़ा गहना
ठंडक बस गई
मौसम के बदन में
चमन ने भी दोशाला पहना
मन कि फूलबगियाँ
उल्लासित हो थर-थर कापे
तुम हरदम ही संग रहना
मदहोशी में चमन झूमते
हवा पहने खूसबू का गहना
भर गये आंचल में
सपनों के अनगिनत नगर
खनका जब मेरा कंगना
सुख की रिमझिम
बरसी बरखा आओ झूमे
संग-संग सजना।
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