Gul गुल

गुल

समझ नहीं पा रहे हैं
क्या माजरा है
क्या कोई नया गुल
खिलने का अंदेशा है
तड़पते हैं देखने
को फरिश्ते
जाने कैसे हो
मुलाकात
मन के मचलते
सूना- सूना सा
जीवन क्यों लगता
उदासी का यह
कैसा आलम बिछता
सखियों ने समझाया
कुछ हमें बतलाया
पगली है तू कितनी
समझ में आया
ऐसा ही होता है
जब दिल में कोई रहता है
यही तो प्यार के

जुड़ने का गठबंधन हैं।

©A

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