ग़ज़ल
दर्द का एक सिलसिला होगा,
जख़्म ताजा कही लगा होगा ।
देख अटखेलियों से शब्दों की,
मन का हर द्वार खुल गया होगा ।
हो के कल ख़्वाब की नगरिया से,
चाँद आकाश पर गया होगा ।
रोशनी की चुभन से डर कर ही ,
वह अंधेरों के घर गया होगा।
मर्म के अनखुले तिलिस्मों को,
कोई चीखों से भर गया होगा ।
©A
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