Dil Chahta hai दिल चाहता है

दिल चाहता है

उसने भाई को जब से वह समझदार हुआ है, ऐसा ही देखा है। हर दम शांत रहना, अपने कमरे में ही ज्यादा समय बिताना, किताबें पढ़ना बस, उनका यही शौक है ।

वह दोनों भाई एक ही स्कूल में पढ़ते हैं, भाई बाहरवीं में है, शहर के सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ना, ऊपर से भाई का स्कूल कैप्टन होना, उसे कोई खास बात नहीं लगा करती है।

राघव भैया जितना घर पर कम बोलते हैं, उस से पांच गुना ज्यादा स्कूल में बोलते हैं, छोटे, बड़े सभी बच्चे उन्हें भैया कहते, अपनी समस्या बताते, जिन्हें राघव भैया आसानी से सुलझा देते।

फुटबॉल मैच चल रहा है, उनके दोस्त की टोली फुटबॉल मैच देख रही है वह भी राघव भैया के दौस्तों के नजदीक बैठ गया, राघव भैया खेल रहे हैं।

“अरे गिरी, तू बड़ा किस्मत वाला है, जो राघव तेरा भाई है, मेरा ऐसा भाई होता तो मैं तो गर्व से फूला न समाता.. जयवीर ने बहुत त्साह से बोला।

“कितना होशियार है गेम्स में भी, व्यवहार तो अच्छा है ही,”… किशन बोला।

“टीचर और प्रिंसिपल भी कितना चाहते हैं राघव भैया को,”.. मुरली ने अपना पक्ष रखा।

गिरी ने कभी अपने भाई को इन खूबियों की नजरों से देखा ही नहीं या कहे कि देखने दिया ही नहीं गया, गिरी दौस्तों की बातें सुन रहा है, मैच खत्म होते ही उसके दोस्त दौड़ पड़े और राघव पर आगे पीछे से लटक गये। खूब शोर मच रहा है, राघव भैया को कंधे पर उठाकर सभी लड़के मैदान में घुमा रहे हैं।

बचपन से दिमाग में बैठा दी गई सौतेले भाई की छवि बनी हुई है, कि राघव को गिरी का कोई भी काम अच्छा होता कभी एक आँख नहीं भाता है, यह सब पाठ भी मम्मी ने पढ़ाये हैं, जिनसे गिरी कभी उबर नहीं सका, यह सोचने की कभी कोशिश नहीं की।

जब से थोड़ा समझने लगा है तभी से है जान पाया कि भैया में क्या क्या गुण हैं, किंतु मम्मी आज भी उसे भैया के खिलाफ ही सोचने पर मजबूर करती है।

उस दिन घर आकर वह लेट गया, राघव भैया अपने कमरे में हैं, उसे याद है कभी भैया हम लोगों के साथ खाना नहीं खाते, अपने कपड़े खुद धोते हैं, कमरे की सफाई करते, खाना निकाल अपने कमरे में ही खा लेते हैं।

आज यह सब गिरी को बुरा लग रहा है, उसके स्कूल जाने पर पापा, मम्मी तैयारी करते हैं, एक कपड़ों पर प्रेस कर रहा है, तो दूसरा पुस्तके ढूंढने में मदद, किंतु भैया की तरफ किसी का ध्यान नहीं रहता, अकेले ही भैया तैयार हो कर समय पर गेट पर खड़े हो जाते हैं, उनसे कभी स्कूल बस नहीं छूटती है, जबकि उसने कई बार बस छोड़ी है, फिर पापा उसे स्कूल तक छोड़ने जाते हैं, इतना बुरा व्यवहार करते रहे हैं मम्मी-पापा, भैया के साथ और मुझे भी वैसा ही करने को प्रेरित किया, जिस भैया को पाने को उसके दोस्त ललचाए रहते हैं, उन्हीं की क्या कद्र कर दी है उसने, यह सब सोचकर ही उसका मन क्लांत हो गया। अब उसे ही कुछ करना होगा।

दूसरे दिन गिरी ने स्कूल से आते ही दो गिलास दूध गर्म किया और भैया के कमरे में ले आया।

“तुम, क्यों ले आये, मैं ले लेता आकर,” उसे आया देख राघव बोला।

“भाई, आज आपके साथ दूध पीने का मन है,”…

“मम्मी ने देख लिया तो मेरा तो कुछ नहीं, तुम्हें डांट पड़ जाएगी, फिर तुम्हें तो डांट खाने की आदत भी नहीं है,”…राघव परेशान होकर बोला।

“तो क्या हुआ भैया, खा लूँगा डॉट,”..

“बात वह नहीं है गिरी, तुम्हारे ऐसा करने से मम्मी को दुख होगा,”…

“होने दो,”.. गिरी ने लापरवाही से बोला।

“ऐसा नहीं कहते गिरी, खासकर तुमको वह बहुत प्यार करती है,”…राघव समझाने की कोशिश करते बोला।

“आप मुझे प्यार नहीं करते भैया,”… गिरी ने बात का रुख मोड़ दिया।

“करता हूँ न, ऐसा क्यों पूछ रहे हो,”…थोड़ा आश्चर्य हुआ राघव को।

“अच्छा तो फिर दूध पी लो,”…गिरी ने दूध का गिलास आगे कर दिया।

“अच्छा दो भाई,”…

“अच्छा यह नहीं यह ग्लास लिजिये,”… गिरी ने दूसरे हाथ में पकड़े ग्लास को आगे कर दिया।

“तू भी तो पी,”…

“पहले आप पियो,”…

ठीक हैं, लो मैं पी रहा हूँ तुम भी शुरू हो,”…राघव गटागट दूध पी गया।

दोनों आमने सामने खड़े हैं। गिरी बहुत गौर से राघव के चेहरे के भावों को पढ़ रहा है, जहाँ मम्मी को पता न लग जाये की दहशत साफ नज़र आ रही हैं।

“भैया एक बात कहूँ,”… बहुत इत्मीनान से गिरी ने पूछा।

“हां बोलो,”…

“इस दूध में जहर मिला था,”… गिरी ने झट से कह दिया।

कुछ देर राघव, गिरी को देखता रहा, नजदीक आकर, उसके माथे को चूम लिया।

“तुम खुश हो, मुझे यह दूध पिला कर, यही मेरे लिए काफी है,”… राघव का स्वर शांत सागर सा हवा में तैर गया।

राघव के यह शब्द सुनते ही गिरी, राघव से लिपटकर फूट-फूटकर रो दिया।

“भैया, मुझे माफ़ कर दो,”…गिरी दोहराये ही जा रहा है।

राघव चाह रहा था कि गिरी जितनी जल्दी हो कमरे से बाहर चला जाये, वह उसे चुप कराता हुआ दरवाजे तक लाया और दरवाजे के बाहर कर दिया। राघव ने कागज पेन लिया और उसमें में कुछ लिखने लगा।

लगभग दो घंटे बाद गिरी धीरे से अंदर आया, राधव पलंग पर सो रहा हैं, नजदीक आकर, राघव के चेहरे को गौर से देखता रहा, कितने शांत लेटे हैं, राधव के चेहरे पर एक ममतामई मुस्कान बिखरी है, गिरी को अपने भाई पर खूब सारा प्यार आने लगा। आँखें तरल हो उठी, उसे अफसोस हो रहा है कि अपने भाई के प्यार से वंचित रहा, कभी भाई ने अनावश्यक अधिकार भी तो नहीं जताया, वह ही हमेशा दूर-दूर बना रहा, एक अनजानी सी दूरी सदा दोनों के बीच में खींची रहती थी।

उनसे नजर हटी तो देखा टेबल पर एक कागज रखा है, गिरी को उत्सुकता जागी, देखे तो भाई ने क्या लिखा है।

मैं राधव, अपनी इच्छा से आत्महत्या कर रहा हूँ, मेरे घरवालों को परेशान न करें,”….राघव।”

गिरी वही धम्म से कुर्सी पर बैठ गया, इतना गहरा प्यार करते हैं भैया, मैंने यह हरकत इसलिए की, भैया मुझसे कुछ कहेंगे, किंतु उन्होंने तो अपने प्यार की इंतहा कर दी, मैं ऐसे भाई से इतने बरसों क्यों सौतेला बर्ताव करता रहा, सच कहते हैं मेरे दोस्त, राघव जैसा भाई पाना ही धन्य होने के लिए काफी है, दृढ़ निश्चय कर लिया गिरी ने कि भैया को इस घर में भी पूरा सम्मान दिया जायेगा।

रात नौ बजे जब राधव उठा तो गिरी वहीं बैठा है, राधव ने अपने चारों और देखा, गिरी को मुस्कुराता देख मुस्कुरा दिया,”…

“अच्छा,तो यह तेरी शरारत थी,”…राधव ने बहुत तसल्ली से कहा।

पर्ची उठाकर, गिरी पढ़ता हुआ, राघव से लिपट गया, अब राघव भी अपने आँसू नहीं रोक पाया, आज बहुत वर्षों बाद आत्मीय सुख पाकर रोया है,यह उसके इतने वर्षों के दबे हुये वह आँसू है, जो वह किसी के सामने नहीं निकाल पाया।

मम्मी, पापा की नजरों में आ गया कि गिरी आजकल राघव के साथ ज्यादा रहता है, गिरी कुछ विद्रोही प्रवृत्ति का व्यवहार भी उन लोगों से करने लगा है। एक दिन उसके लिए वह नये कपड़े ले आये, पापा ने गिरी को बड़े प्यार से बुलाकर वह कपड़े दिखाये, थोड़ी देर गिरी कपड़ों को देखता रहा फिर कपड़े उठा कर फेंक दिये, मम्मी पापा दोनों चौके।

“यह क्या गिरी, पापा कितने प्यार से तेरे लिए लाये हैं, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए,”… मम्मी की आवाज में तल्खी उतर आईं।

“क्या बात है गिरी, कपड़े पसंद नहीं आये बेटा,”.. पापा ने बात को सम्हालते हुये पूछा।

गिरी शांत बैठा रहा वह देखता रहा था कि उसे मनाने के लिए मम्मी पापा बेचैन हो रहे हैं , बहुत देर मना लेने दिया।

“मम्मी, आप मुझे प्यार करती हो, क्योंकि आपने मुझे जन्म दिया है, अगर आप इस दुनिया से चली गई तो मेरी हालत भी राघव भैया जैसी हो जाएगी न,”…सपाट स्वर में गिरी बोला।

“गिरी, तू यह क्या बोल रहा है,”…चीख पड़े पापा।

“आप तो चुप रहिये पापा, आप तो सगे है न भैया के, तो आपने उनको वह प्यार क्यों नहीं दिया, जो मुझे खुले ह्रदय से दे रहे हो, मम्मी तो पराई है, किंतु आपने भैया के मामले में कितनी समझदारी दिखाई,”… गिरी गुस्से से उबल पड़ा।

“गिरी, चुप कर क्या अनाप-शनाप बक रहा है,”.. मम्मी गुर्राई।

“मम्मी, आप मुझे ममता देती हो, क्योंकि आपने मुझे जन्म दिया है, अरे, जानवर भी अपने बच्चे को प्यार करता है, तो आपने क्या नया किया, मेरी हालत देखो, लगता हूँ न खाते-पीते घर का, वही भैया को देखो, कैसे सूखे-सूखे से हैं, क्योंकि उनके शरीर का विकास भी प्यार की कमी से सूख गया, और पापा, आज आप मेरे लिए कपड़े लाये, तो क्या भैया के लिए लाना आपका फर्ज नहीं था, सोचो मम्मी, मेरी भी हालत भैया जैसी हो सकती है, पापा यदि फिर एक और नई मम्मी ले आते हैं तो, भैया जैसा व्यवहार मेरे साथ भी होगा न,”… गिरी का चेहरा तमतमा रहा है, दुख और गुस्से के मिले-जुले भाव उसके चेहरे से साफ झलक रहे हैं।

पापा सर थाम कर बैठ गये, मम्मी अपराध बोध लिए खड़ी है।
राघव भैया अपने कमरे से बाहर नहीं आये।

गिरी धीरे-धीरे चलता राघव भैया के कमरे में चला गया, राघव ने उसे अपने में समेट लिया।

“तू, इतना सा, इतनी बड़ी-बड़ी बातें कहाँ से सीख गया मेरे भाई,”…राधव के आँसू बह निकले।

“आपका भाई हूँ भैया,”…गर्व से बोला गिरी।

दोनों भाइयों ने एक दूसरे को प्रगाढ़ स्नेह बंधन में बांध लिया, तब मन की नजदीकियों ने खून की दूरियों की सारी रेतीली दीवारें ढा दी। आज गिरी ने जाना की हिम्मत करने से और गलतियों को सही समय पर सुधार लेने से आत्मग्लानि से बचा जा सकता है, आज उसने जो हिम्मत की, वह कहीं न कहीं अंदर से उसे डरा भी रही थी, लेकिन जब मन से ठान ले और तर्क सही दें, तो आपकी हिम्मत दोगुनी हो जाती है।

पापा-मम्मी आँसू पूछते हुये, राम,भरत मिलाप के साक्षी बनकर, धन्य हो रहे हैं, तो दूसरी ओर अपने किये पर शर्मिंदा।

©A

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