Viraje विराजे
हिम की श्वेत पट्टिका देखी
प्यार की हरियाली टांक दी
पिघल रहा है रससार होकर
सहला देता हर एक पत्ति
तुम तो भोले ऐसे बिराजे…..
शिखर पर चंद रखे हो
गर्भ में अनेक पाले ,
जाने कितने देव बस गये
आगे, पीछे, ऊपर, नीचे
तुम तो भोले ऐसे बिराजे ….
साधना का स्थल बनकर
कल्याण मार्ग के द्वार खुल गये
शांति की सरिता में बैठा
हर दिल को सन्मार्ग दिखाते
तुम तो भोले ऐसे बिराजे…..
अंधेरा भरसक कोशिश करे
सूर्य की आँखों से आँखें मिला ले
तेज दे सके करें प्रयास वह
दिन ढलने तक रिसता रहता
तुम तो भोले ऐसे विराजे …..
पुण्य प्रताप यही बस उनका
जितना पिघले उतना कम है
प्यास बुझाता, शांति देता
गोदी में अपनी भर लेता
तुम तो भोले ऐसे बिराजे…….
शोभा जो जीवन की है
वह गर्व कर रहे हैं सब
दर्द में साथ समा पाते तो
संग, साथ हो लिए होते तब
पर तुम तो भोले ऐसे विराजे…..।
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