ठान लो

रजनी ने अपने बच्चे न होने के गम को कम करने के लिए जेठानी सावित्री के बच्चों के साथ बांट लिया था। सावित्री भी अपना छोटा बेटा पंकज को उसके हवाले करके निश्चित हो गई थी ।
रजनी ने पंकज को इतना लाड प्यार दिया कि वह बिगड़ गया, जो भी जिद करता रजनी प्यार में रस सार हो पूरा करती । नतीजा हुआ कि निकम्मेपन से पूरे गाँव में आवारागर्दी करता रहता । हमेशा शरारत करना, किसी न किसी को ऐसे जरूर बोल देना जिससे शिकायतें घर तक आ जाए। रजनी क्या कहे, अपने बेटे का बचाव ही करती रहती।
हा सावित्री अवश्य उन्हें कहती ….”जरूर तुम्हारे साथ यह सब किया होगा, बिगाड़ा किसने है यह तो देखो।”
“अरे लल्ला, तुम भी कम नहीं हो, जरूर तुम्हीं ने छेड़ा होगा, रजनी बीच में ही बोल पड़ती।
“हां.. हां.. इनकी यह उम्र है ना, तेरा लड़का तो सीधा साधा है.. सावित्री ताना मारती ।
दोनों को यूँ उलझता देखकर शिकायतकर्ता खिसक लेता, फिर क्या है पंकज के घर आते ही सावित्री उसे आड़े हाथों लेते।
रजनी चुपचाप उसे अंदर ले जाती। रजनी की शह पर ही पंकज न तो भाइयों का खेती बाड़ी में हाथ बटाता, न ही उनकी किसी बात पर ध्यान देता।

रोज सुबह बाल सवारता, गले में मफलर बांध, हाथ में कड़ा डाले, बड़ा डंडा लेकर पूरा गुंडा बना घूमने निकल जाता । उसी के दो चार चमचे उसके साथ रहते। गाँव की चौपाल पर बैठकर हंसी ठठ्ठा करना उनका काम है रो वो कर पांचवी तक पढ़े हैं महाशय।
एक दिन दोपहर में दूर से एक बैलगाड़ी धूल उड़ाती चली आ रही थी। बैलों के गले की घंटी मधुर स्वर लहरी बिखेर रही थी। गाँव के बाहर बैठे इन अलमस्त आवाराओ का ध्यान वही लगा था। भर दोपहरी में कौन आ रहा है। गाड़ी पास आते आते धीमी हो गई, गाड़ीवान ने रघुवीर ठाकुर का पता पूछा ।
“क्या काम है…” एक आवारा ने जुगाली सी की ।
“हमें उनके घर तक जाना है।”
“काम बताओ, तभी बताएंगे,.. मस्ती के मूड में थे वह।”
“चलिए काका, गाड़ी में से आवाज आई, गाड़ी तंबूदार थी जिसमें पर्दे पड़े थे।
गाड़ीवान गाड़ी आगे बढ़ाने को उद्धत हुआ कि उनमें से एक आवारा कूद कर बैलों के सामने खड़ा हो गया ।
“पहले काम बताओ, तभी गाँव में घुसने देंगे..” उसने कहा ।

कुछ देर खामोशी रही, फिर पायल की रुनझुन के साथ गाड़ी में से दो खूबसूरत पैर बाहर निकले और एक झटके में ही उछल कर जमीन पर खड़ी हो गई।
पलट कर देखा तो पंकज के होश उड़ गए, इतनी खूबसूरत कि लगा कोई अप्सरा अभी- अभी दूध से नहा कर आई है, उस पर चटक रंग की काले फूलों वाली लाल साड़ी पहने वह अप्सरा सधे कदमों से आगे बढ़ी।
“कौन हमें, गाँव में जाने से रोक रहा है…?” उसने पूछा ।
“यह रोकना चाहते हैं ” जो बैलों के सामने खड़ा था उसने पंकज की तरफ इशारा करते हुए कहा।
वह पंकज के बिल्कुल करीब पहुँच गई ।
“फिर से कहिए, जो आपने अभी कहा..” उसने कहा।
“हम… आपको …गाँव …में नहीं जाने …देंगे …टुकड़े-टुकड़े में कह पाया पंकज, होश जो उड़ गये थे इतने करीब अप्सरा को देख कर।
“क्यों ?” तेज स्वर का सवाल गूँजा।
“हमारी मर्जी,”…अब थोड़ा सम्हल कर, साहस से बोला।
“चटाक, की आवाज के साथ एक झन्नाटेदार चाटा पंकज के गाल पर रसीद हो गया… “यह हमारी मर्जी, मां के बिगड़ैल बेटे , बाप का बोझ हो तुम समझे, मैं मां का गौरव हूँ और बाप का सम्मान, मेरे सामने तुम जैसे ओछे, छोटी और सस्ती हरकत करने वालों की कोई अहमियत नहीं है, मेरी बात याद रखना, …” ठहरे हुए लहजे मैं वह बोली।
बहुत इतमिनान से गाड़ी में बैठ गई और बैलगाड़ी धूल उड़ाती हुए आगे निकल गई ।

पंकज आज इतना छोटा हो गया कि उसे ढूंढने पर भी अपने में कोई ऐसा गुण नहीं मिला जिसे वह गर्व से किसी के सामने बता सके, उसे लगा कि वह क्या है। पूरे जीवन पर सरसरी नज़र डाल गया, कहीं कोई ऐसा व्यक्ति नज़र नहीं आया जो उससे खुश हो।
वह गहरी सोच में डूबा रहा।
जब सम्हला तो देखा वह अकेला खड़ा है, सभी साथी भाग गए हैं। उसके मस्तिष्क में एक ही बात गूंज रही हैं…. “मैं मां का गौरव और पिता का सम्मान हूँ ” और वह क्या है ? सोचता हुआ वह धीरे- धीरे किन्तु मजबूत इरादों के साथ घर की ओर बढ़ता चला जा रहा है। अपने होने को सार्थक जो करना है।

समाप्त…..