Priceless heritage अनमोल धरोहर

अनमोल धरोहर

अनमोल और नमिता ने निश्चित किया था कि नमिता उसके पास गाँव बटकाखापा आकर कुछ दिन रहेगी और अपने कॉलेज के दिनों को वह दोनों याद करेंगे, भूले बिसरे जाने कितने प्रसंग अपने आसपास बिखरे पड़े हैं उन्हें समेटेगें, यह पहले से ही उनकी योजना थी कि इस बार की मुलाकात में सिर्फ बातें ही बातें होंगी।

नमिता की इस बार की मुलाकात में एक खास बात यह थी कि वह सब कुछ श्रीधर की नजरों से देखना चाहती थी और इस समय व उसकी संदेशवाहक भी थी श्रीधर की जिज्ञासा के तहत उसके अंतर्मन को टटोलना था और नमिता को सब कुछ ज्यो का त्यों श्रीधर को बताना था।

नमिता आई और रही भी इस बार उसने अनमोल के उन पहलुओं को छुआ जिन्होंने उसे यहाँ रहने के लिए बाध्य कर दिया और वह सब कुछ सुन कर जब वापस अपने शहर पहुँची तो उसने वही सब खत में श्रीधर तक भेजने का प्रयास किया।

श्रीधर,
मैं अनमोल के पास से होकर लौट आई हूँ, और तुम्हें वहाँ की पूरी स्थिति से अवगत कराने की पूरी कोशिश करुंगी।
श्रीधर जब भी तुम्हारा जिक्र निकलता तुम्हारा एक ही वाक्य अनमोल की जुबान से निकलता।

“श्रीधर, मुझे अक्सर कहते, तुम्हारे मन की सुंदरता का मैं बयान नहीं कर सकता,”…अनमोल की यादों में भटकती यह पंक्तियाँ अक्सर मन पर स्नेह चोट करती, जीवन के साठ बसंत पूरे हो गए, इस छोटे से गाँव में अध्यापन कार्य करते हुए। गाँव के बीच एक नदी है जो बटकाखापा को दो भागों में बांटती है, शायद इसी की वजह से यह गाँव सुंदर लगता है। कच्चे पक्के मकान नदी किनारे-किनारे बने हैं, आसपास लगे वटवृक्ष के विशाल झुंड में घर घुल मिल जाते हैं।

नदी तट के गोरे सफेद पत्थर प्रकृति की विशेष आभा लिए होते हैं, नदी पार कर जाना होता है अनमोल का सरकारी स्कूल जो नदी के उस पार हैं। नदी को पार करने के लिए उछलते कूदते ही पार करना होता है, एक पैर भी गलत पड़ा कि बस पैर पानी में, गर्मियों में यह सूख कर नाली की तरह बीच में ही बहती रहती है। स्कूल से लौटते वक्त चप्पल हाथ में उठा शीतल जल में खड़ी रहती है दिन भर की थकान छू हो जाती है ।

शुरू में यह गाँव अनमोल को बुरा लगता था। एक तो शहर से आना, दिल भी टूटा और अपनों को छोड़कर परायों के बीच बसना, बहुत ही कठिन लगता था।

ग्राम प्रधान ने बड़े उत्साह से अनमोल का स्वागत किया था। एक तो पहली महिला बहनजी उसपर ग्राम प्रधान का बालिकाओं को पढ़ाने का सपना पुरा होने के संकेत थे।

आठ दिन तो प्रधान के परिवार के साथ रही, उनकी बहुयें अजीब नजरों से देखती, जनानी होकर पढ़ाती है स्कूल में, उन्हें बहुत आश्चर्य होता। अनमोल के सरल स्वभाव ने ही उन्हें अनमोल को सखी मानने पर मजबूर कर दिया था।

“बुद्धा के लड़के को स्कूल भेजना है मरा जाता ही नहीं, रास्ते से ही भागा जाता है जाने कहाँ, वह प्रधान की बहू है न रामपुर वाली रति वही बोली बहन जी मेरी सखी है मैं उन्हें बोल दूंगी, वह अपने साथ मारुन को स्कूल ले जाया करेंगे मेरी बात नहीं टालेंगी, तुम तैयार कर समय पर बहन जी के घर छोड़ आया करो,”…चाची बोली,यह पुरे गाँव कि मुँह बोली चाची, हर कोई उनसे आकर अपनी समस्या बता देता और उसको समझाना उनका ही दायित्व था।

“हां भेज देना,”…अनमोल को अटपटा तो लगा था लेकिन चाची की साख, थी जिसकी वजह से वह मना नहीं कर पाई, अजीब भी लगा था कि ऐसे कैसे, लेकिन हां तो कह ही गई।

दूसरे दिन चाची मारून को ले आई। गोलू-मोलू सा वह बच्चा शक्ल से बड़ा प्यारा लग रहा है, उसे तो यह ज्ञान ही नहीं कि उसे स्कूल ले जाने के लिए लेकर आए हैं, लेकिन अगर चाची लेकर आई है तो वह काम करना है यह बात गाँव का बच्चा-बच्चा जानता है, क्योंकि अब तक पूरे गाँव में यह बात फैल गई होगी की चाची मारुन को लेकर बहन जी के पास गई है । अब सारे गाँव वालों कि नजर मारुन पर रहेगी। वह उन्हें स्कूल के समय पर इधर-उधर घूमता न मिले, इस गाँव की यही तो बहुत अच्छी खासियत है कि सब एक दूसरे के मान सम्मान का ध्यान रखते हैं बहुत ही भोले होते हैं गाँव के लोग, छल कपट अभी तक नहीं आया है इनमें।

“अब बहन जी आप ही इसे ले जाया करो,”…चाची मारुन को सामने धकेलती हुई बोली।

मारुन बड़ी-बड़ी आँखों से अनमोल को यूं घूर रहा है जैसे अनमोल ने उसे साथ ले जाने की हां की तो वह अनमोल को सजा जरूर देगा, मारुन का दायित्व अनमोल को गाँव में रहने का सहारा बन गया।

अनमोल धीरे-धीरे उससे घुलने मिलने लगी और पढ़ाई के लिए उसका रुझान भी बढ़ने लगा, उसके साथ-साथ गाँव के कई बच्चे भी स्कूल आने लगे और लड़कियों ने भी स्कूल में प्रवेश ले लिया।

दिन गाँव की दिनचर्या में गुजरने लगे, वहाँ के लोगों को प्रोत्साहित करना, बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित करना, कुछ सीखना, महिलाओं को भी शाम को पढ़ा देना, उनकी अपने हस्ताक्षर करने तक की खुशी को अनमोल ने भोगा है, वह अपने इस कार्य में इतनी तल्लीन हुई कि समय कैसे बीत गया पता भी नहीं चलता उसे।

आठवीं तक मारुन साथ ही जाता रहा और आगे पढ़ने के लिए उसके बापू से कहकर हर्रई भेजा गया। छुट्टियों में आता तो पुस्तक लेकर अनमोल के पास आ जाता और जो भी पूछना होता पूरी छुट्टियों में पूछ लेता, उसके सवाल हमेशा आश्चर्य में डालते, मसलन… इस साल वर्षा कितनी होगी, मैं पढ़ाई कैसे करूं कि जिससे मेरा प्रतिशत बढ़े, गाँव में गर्मी क्यों नहीं लगती, शहर में ज्यादा क्यों लगती है, इंसान को सारे काम चलाने में कैसी-कैसी दिक्कतें उठानी पड़ती है, मारुन के प्रश्न अलग ही होते, जो इस उम्र के बच्चों के लिए आश्चर्य कि बात है। ऐसे ही कई सवालों से वह अनमोल की छुट्टियाँ भर देता।

मारून, अनमोल की जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया। कॉलेज होते-होते तक उसने ठान लिया था कि उसे कुछ ऐसा करना है जो अभी तक नहीं हुआ है उसकी दिलचस्पी उन चीजों में है जिनसे वह मानव के लिए कुछ कर सके।

श्रीधर,आज मारुन वैज्ञानिक बन गया है उसके वैज्ञानिक बनने पर अनमोल का नाम जुड़ा रहता, जब कभी भी नई खोज होती तो साथ में अनमोल का नाम अक्सर जोड़ देता। कितना अच्छा लगता है उसके प्यार से भरे खत, जब भी लिखता है अनमोल को कोई अपना होने का अहसास कराता है।

प्रश्न पूछने की आदत अभी भी है मारुं में, जो बात समझ में नहीं आती, पत्र डालकर पूछ लेता और अनमोल को पुस्तकों में ढूंढने में हफ्तों लग जाते, संतोषजनक उत्तर मिलने पर ही वह मारुन को जबाव दिया करती है।

मारुन की वजह से अब अनमोल इस गाँव में पूजी जाने लगी है।लड़की हो, शादी, बच्चे का मुंडन सभी शुभ कार्य में उन्हें अनमोल की गोद जरूर नसीब होती है।

“बहन जी का बड़ा प्रताप है, सब मारुन जैसे बने,”… और श्रीधर, में मन ही मन गर्व करती हूँ कि अनमोल में कुछ तो है तभी लोग इतना प्यार करते हैं।

श्रीधर, तुम्हारी यादें जो अनमोल की धरोहर हैं, संजोकर रखी हुई है। इस भोले भाले गाँव वालों के प्यार ने अनमोल की जिंदगी को सरलता से यहाँ तक पहुँचाने में सहायता की हैं ।

जब भी अनमोल अकेली महसूस करती हैं, श्रीधर, तुम्हारी बातें याद कर लेती हैं, उसे लगता है आज भी वह वही है और तुम भी वही ।
अनमोल को अपनी जिंदगी से कभी कोई शिकायत नहीं रही। प्यार न मिल सका तो भी वह इसमें कारण ढूंढ लेती है, शायद वह प्यार संभाल नहीं पाती।

कई बार अनमोल का तबादला हुआ। गाँव का गाँव जाकर रुकवा लाता,….”हम इस गाँव से बहन जी को कहीं नहीं जाने देंगे,”…
स्नेह के यह बंधन अनमोल को रससार कर देते।

जब अनमोल इस गाँव में आई थी उस वक्त जो टूटी सी खंडहर नुमा स्कूल की इमारत थी, अब वह दो मंजिला इमारत बन गई है। बच्चों के खेल विज्ञान के लिए भी यहाँ गाँव के सभी लोग मिलकर सामान मंगवाते हैं । लड़कियाँ अब लगभग सभी पढ़ती हैं और अनमोल से कढ़ाई बुनाई भी सीख लेती हैं । इस गाँव की लड़कियाओं की शादी के लिए अब दूसरे गाँव के लोग लालायित रहते हैं, उस पर अगर वह बहन जी के यहाँ सीखने जाती है तो इज्जत और भी बढ़ जाती है।

श्रीधर, बहुत अच्छा लगता है अनमोल प्यार न पा सकी, किंतु देखो, उसे प्यार, अपनत्व के साथ कितना बड़ा परिवार मिला है, उसके तन्हा समय के साथी यहाँ की प्रकृति, पेड़ पौधे,नदी पहाड़ के साथ तुम्हारी मधुर स्मृतियाँ हमेशा ही साथ रहे हैं ।

श्रीधर, मैं जब से अनमोल के पास से लौट कर आई हूँ, मैंने बहुत बार कागज कलम उठाया कि तुम्हें उसके बारे में विस्तार से लिखूं, आज लिख पा रही हूँ फिर भी लग रहा है कि बहुत कुछ छूट गया है ।

अनमोल से मिलकर मेरे मन की छटपटाहट तो कम हो गई है और उसे सूखी देखकर मैं पूरी तरह से संतुष्ट हूँ, मुझे उम्मीद है कि यह खत पढ़कर तुम्हें भी अनमोल की प्रति अपनी जिज्ञासा को शांत करने का मध्य मिल जाएगा, तुम अपने आप को जो तमाम उम्र दोषारोपण देते रहे हो अब यह करना बंद करो, मैं तुम दोनों की दोस्त हूँ और तुम दोनों के बीच के बिछोह के दर्द को मैनें भी उतना ही झेला है।

श्रीधर, तुम दोनों की अगली सुबह सुखद होगी या फिर शायद अगला जन्म। यह नीति पर छोड़ दो और अपने जीवन की बचे तमाम दायित्वों को अपना कर्तव्य समझकर निर्वाहन करो, अनमोल की तरफ से तुम पूरी तरह से आश्वस्त हो जाओ कि वह प्रसन्न है।

शाम ढलान पर उतर आई है सूर्य ने अपनी मद्धिम रोशनी कर ली है वह अपने अगले गंतव्य की ओर बढ़ रहा है। सांझ को जगह दे रहा है कि वह पुनः अपने समय पर धरा पर उतरे और उसके तेज से मानव को प्रकृति को सुकून दिलाएं, मैं भी श्रीधर अपनी कलम को विराम देती हूँ और अगली बार की मुलाकात के लिए कुछ बचा कर रखती हूँ।

तुम दोनों की दोस्त

नमिता

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