Renuka Bhabhee रेणुका भाभी

“अरे रेणुका, तेरी ननद के ससुराल में कुछ गड़बड़ चल रही है, हो सकता है कि वे तेरी ननद को छोड़ने की तैयारी भी करे।”

“तुम्हें, कैसे पता राधा?”

“मेरी चाची के रिश्तेदार हैं वह लोग, उन्हीं के मुँह से यह बात सुनकर आ रही हूँ, पता नहीं चक्कर क्या हैं।”

“हो न हो, कोई बात तो है वरना बात यूँ न चलती, पता नहीं कैसे मेरी ननंद राशी दीदी यह सब बर्दाश्त कर रही होगी, एक लड़की के लिए शादी जितनी खुशी की बात है, वही बंधनों का टूटना उतना ही मुश्किल कर देता है जीवन को,” रेणुका बोली

“चल ज्यादा फिलासफर मत बन, तुम खुश रहो, तुम्हारी शादी है। देखते हैं, दुल्हा मियां कैसे आसानी से हमसे बचकर जाते हैं,” ज्योति ने कहा तो दोनों सखियाँ खिलखिलाकर हँस दी।

रेणुका की बेचैनी कम होने का नाम नहीं ले रही है। उसे नारी होने की पीड़ा और उसके दुख का आभास हो रहा हैं, वह सोचने पर मजबूर हो गई कि राशी दीदी का क्या हाल हो रहा होगा। भाई की शादी का जश्न वह ऊपरी तौर पर तो मना रही होगी, लेकिन अंदर से अपने अनिश्चित भविष्य का डर उन्हें खाए जा रहा होगा। जिस परिवार में वह जा रही है, वहाँ वह राशी दीदी के साथ हमेशा खड़ी रहेगी,सोचकर उसे कुछ राहत मिली।

बारात आई। राशी दीदी भी आई, कीमती साड़ी में वह आज दमक रही है। लगता ऐसा है जैसे बड़े मनोयोग से अपने बनाव श्रृंगार पर ध्यान दिया है, सुंदर तो वह बहुत है आज तो गजब ढ़ा रही है, रेणुका उनके व्यक्तित्व पर तो पहले से ही मोहित थी, लेकिन आज तो उनसे इस छवि से प्यार भी हो गया। रेणुका अपनी ही सोच पर मुस्कुरा दी।

वरमाला के बाद, स्टेज पर जब रेणुका,अमित बैठे तो रह-रहकर रेणुका की नजरें, सामने बैठी राशी दी पर अटक जाती।

अपने एक वर्ष के बेटे को संभालते-संभालते थक सी गई हैं। जीजाजी स्टेज पर हैं। उन्होंने एक बार भी बेटे को दीदी की गोद से लेना जरूरी नहीं समझा, रेणुका को अपने आप ही जीजाजी से चिढ़ होने लगी, उसका मन कर रहा है कि दौड़कर जाए और दीदी की गोद से बेटे को ले लिया।

थोड़ी देर बाद राशी दीदी की ओढी हुई खुशी काफूर हो गई। बेटे की शरारत व अपने दुखी मन के बीच में असहाय लगने लगी। सामने से उठ कर चुपचाप वह भीड़ से बाहर मण्डप की तरफ बढ़ गई, रेणुका की बेचैनी भी बढ़ने लगी, उसे अपनी शादी मैं दर्द के दल-दल में धंसी राशी दी की बैचैनी को अपने अन्दर महसूस कर रही है।

राशी बेटे को लेकर लग्न मंडप के पास बैठ गई, गोदी में बेटे को बिठाकर मंडप को देखती रही, इसी तरह तो उसकी भी शादी हुई थी। सब कुछ ऐसा ही था । मन में खुशी अपार थी। कितना खुश थी वह। सभी सहेलियाँ उसकी किस्मत पर रश्क करके रह गई थी। ससुराल जाकर सारे सपने हवा हो गये। नौकरी की दौड़-धूप में प्यार का पता ही नहीं चला कहाँ गुम हो गया। बस नलिन के लिए माता-पिता, बहनें सर्वोपरि थे। वह एक चलती-फिरती कमाने वाली मशीन से ज्यादा कुछ नहीं। राशी ने सोचा था कि शायद संतान के बाद नलिन का व्यवहार बदल जाये, किंतु उल्टा वह बिगड़ता चला गया। अब तो यदा-कदा हाथ भी उठ जाता।

पढ़ी-लिखी राशी, समझ ही नहीं पा रही थी कि मां, बहनें कैसे अपने भाई को उल्टी-सीधी बातें पढ़ा सकती हैं, और नलिन, कैसे बिना सोचे समझे उनकी बातों को सही मान लेता हैं।

उसके मायके में कभी परिवार के बीच ऐसा होते नहीं देखा था, इसलिए वह यह बातें समझ भी नहीं पाती, ओर बात इतनी आगे बढ़ जाती की सफाई देने का वक्त निकल जाता और वह आहत कर दी जाती ।

भाई की शादी का निमंत्रण लेकर पापा आये तो सास ने कह दिया,..” दो दिन पहले भेज देंगे,यहाँ घर पर भी तो काम होते हैं, मैं बीमार रहती हूँ, काम कौन करेगा।”

“सो तो ठीक है समधन जी, इसकी मां अकेली हैं, भाई की शादी की तैयारी इकलौती बहन ही तो करेगी, इसके अलावा कौन करेगा, आप तो समझदार हो, आप इसको मेरे साथ भेज दो जी,”.. पिताजी विनम्रता से बोले थे।

सास चुप लगा गई । मन ही मन जाने कितना कोसा होगा पापा को।
राशी, पीहर आ तो गई पर सास ने जेवर नहीं दिये,शादी में पहनने को।
“अपने से जा रही हो तो खुद अपनी व्यवस्था करना”… सास ने निकलते हुए दबे लेकिन धमकी भरे स्वर में कह दिया ।

राशी का मन बुझ गया, परिवार के सामने अपनी ससुराल की इज्जत कैसे बचाती, सहेली की मम्मी के जेवर ले आई, शादी में काम चल गया।

राशी एकटक मंडप को निहार रही हैं, दुल्हन घर जाएगी तो मुँह दिखाई क्या देगी, वेतन के पैसे सारे नलिन हर माह किसी न किसी बहाने निकाल लेते हैं । बैंक में पैसा भी नहीं है। मां से भाभी को देने को मांगते संकोच हो रहा है। पापा की बीमारी की वजह से मां का हाथ भी तंग है, फिर उन्हें, उसकी स्थिति की जानकारी भी नहीं है । कैसे बताऊँ कि उनकी बेटी की हालात क्या है? पूरी शंका है कि इस बार वापसी के द्वार बंद हो जायेंगे । कुछ दिनों से उससे पीछा छुड़ाने के व्यंग्य बाण वह सास, ननंद से सुन चुकी हैं। अब लगता है कि सोची-समझी साजिश है, वरना शादी में सास-ससुर आते और अपने खानदान की बहू को यूँ बिना जेवर रहने देते क्या ?

“अरे राशी,यहाँ क्या कर रही है? चल अमित बुला रहा है, परिवार के साथ फोटोग्राफी चल रही है आ जाओ”,..कहते हुए पापा ने बेटे को गोद में उठा लिया।

राशी अनमने मन से उनके पीछे चल दी, स्टेज पर नलिन मुस्कुराते हुए खड़े हैं, मन किया पूछूं… तुम्हें, अकेले मुस्कुराने का हक किसने दिया, कैसे मेरी जिंदगी के रखवाले बन गए कि मेरी मन: स्थिति ही नहीं समझ पा रहे हो या फिर समझकर, नासमझ बनने का नाटक कर रहे हो, या मुझे पीड़ा मैं देख खुश हो रहे हो”,.. मन कसैला सा हो गया राशी का।

बरात की वापसी के समय नलिन घर चला गया, वह घर तक नहीं आया। रिश्तेदारों ने तरह-तरह के कयास लगाएँ, वह मौन बनी रही, कोई पूछता तो छोटा सा उत्तर दे देती, “सास ने बुलाया होगा, कोई जरूरी काम होगा,” कहकर नजरें चुरा लेती।

सुबह होते ही शगुन के दौर चल पड़े । तरह-तरह की पूजा के साथ राशी की उपस्थिति अनिवार्य हो गई।  जितना वह मुँह दिखाई की रस्म के नजदीक आने से घबरा रही है, उतना ही उसे ऐसा लग रहा हैं कि समय तीव्र गति से आज भाग रहा है, किस तरह वह इस घड़ी का सामना करेगी, वह सोच नहीं पा रही है । रस्मों में मिले रुपयों को समेट कर देखा तो कुल जमा दो हजार रुपए हुए, यह सब तो दे देगी, लेकिन ननंद, सोने का जेवर देती है, जिसको देखने को सारे रिश्तेदार उत्सुक रहते हैं, इससे ही तो ननंद की ससुराल की संपन्नता का पता चलता है।

आखिर वह घड़ी आ ही गयी, सभी की निगाहें राशी पर, मामी की चुहल शुरू, बोली… “ननदिया बताओं तो तुम्हारी तरफ से दुल्हनिया को क्या मुँह दिखाई दिया जा रहा है।”

राशी का चेहरा और जर्द हो गया । चुपचाप उठी और थाली से सिंदूर उठाकर भाभी का धीरे से घूंघट उठा दिया, सर पर टीका लगाया और कोई देखे नहीं, इस तरह झट से हथेली पर लिफाफा रख दिया।

“दिखाओ दुल्हन, तुम्हारी इकलौती ननंद ने क्या दिया है,”.. निम्मो चाची बोली।

रेणुका ने अपने हाथ आगे कर दिए, लिफाफे को नीचे नेकलेस बॉक्स था।

निम्मी चाची ने खोला तो… आह भर कर रह गई…” हाय… कितना खूबसूरत निकलेस है।”

“अरे राशी, तू तो छुपी रुस्तम निकली, इतने दिनों में हम सभी पूछ रहे थे कि क्या दे रही है, तब तो बताया ही नहीं, देखो भाभी, है ना खूबसूरत,”..निम्मो चाची बोली।

राशी के कान में बात पड़ी तो उसने पलटकर रेणुका की तरफ देखा, रेणुका ने आँखों से ही उसे आश्वस्त किया,कि वह हमेशा उसके साथ है।

राशी की आँखें भर आई, इतनी अच्छी सोच की रेणुका है, ईश्वर करें इसे सारी खुशी मिले। एक उसकी शादी हैं और यह भाई की शादी, रेणुका के व्यवहार ने मां,पिता और भाई के सुंदर भविष्य का खाका खींच दिया, सोचती हुई वह एकांत कमरा तलाशने लगी, जहाँ वह अपना अंतरंग दर्द रेणुका के सामने खुल जाने की ग्लानि को आँसुओं की झड़ी से कुछ राहत दे सके।

© अंजना छलोत्रे



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