Vidambna विडम्बना
बहुत दिनों बाद अम्मा के घर जाना हुआ, तो उनकी दशा देखकर कलेजा मुँह को आ गया, अम्मा जर्जर शरीर लिए आँगन में खाट पर बैठी है, जीवन की विडम्बना कभी-कभी इतना मजबूर कर देती है कि मनुष्य चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता, यही हालत अम्मा की हो रही है।
भरे पूरे शरीर की अम्मा, जब नहा कर तैयार होती और बन ठन का पूरे घर में घूमती तो उनकी आभा चारों ओर बिखरी रहती थी, उनकी कमर में लटका चाबी का गुच्छा उनकी उपस्थिति का आभास देता, वही अम्मा अपनी सूखी काया को लिए, चलने फिरने से भी मोहताज हो गई है।
करीब दस वर्ष पहले गंभीर रोग के कारण अम्मा को पेसमेकर लगवाया गया, उस समय दोनों भाइयों ने अम्मा की फिक्र का ऐसा प्रदर्शन किया कि बिरादरी में उनकी धाक जम गई ।
अम्मा से गले लग कर फूट-फूट कर रानी रो दी।
“क्यों रोती है लल्ली, यह मशीन क्या लगवाई कि यमराज भी पास नहीं आते,”.. अम्मा भरे गले से बोली।
“ऐसा क्यों कहती हो अम्मा,”..रानी फफक पड़ी।
“इस काया का क्या करूँ लल्ली, अब तो खुद का भार भी नहीं सम्हलता, तेरी भाभियाँ, रात दिन मनाती है कि बुढ़िया, अब मरे की तब मरे, पर मौत कहाँ आती है, उसे भी तो बांध दिया गया है,”..अम्मा सकुन से कह गई।
“अम्मा, उन्हें कहने दो, जो कहती हैं, तुम्हें तो हम बहनों के लिए जीना है,”.. रानी ने थोड़े नाराजगी भरे स्वर में कहा।
“लल्ली, मैं भी जानती हूँ, मेरी यह दुर्दशा तुम से देखी नहीं जाती,”..
“अम्मा,”.. रानी अम्मा के गले लग जार-जार रो दी।
रानी यह निर्णय ले रही थी कि कुदरती जो भी शरीर में होता है होने देना चाहिए, यह मशीनें इंसान को कितना मजबूर कर देती है, कहीं तो इच्छा मृत्यु की माँग उठ रही है और कहीं मशीनी पुर्जे क्यों यातना सहने के लिए मजबूर करते हैं।
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