आगर तुम न होते

(भाग 8)

जिया आपने टेबल पर आई और उसने अपने अन्य विभाग के अधिकारियों से बात की, दोपहर तीन बजे की मीटिंग फाइनल कर ली, जिस विषय पर उसे चर्चा करनी थी उसने उसका खाका खींचा और एक कच्चा नक्शा बना लिया उसने यह भी देखा कि साल भर में इस पर कितना ग्रोथ कर सकते हैं और उस पर आने वाले खर्च को हम किस तरह एक साल में और कैसे और कितना वापस भी पा सकते हैं।

तीन बजे जिया ने मीटिंग ली और सभी के सुझाव को नोट करती रही उन्हें यह हिदायत भी दी कि यह काम करने के लिए हम फंडिंग कहां से जुटा सकते हैं और इसको अमल करने के लिए अपने समय में से कितना वक्त और निकाल सकेंगे, सभी के सुझाव को ध्यान में रखते हुए दो घंटे की मीटिंग में यह फाइनल हो गया है कि हमें एक टीम बन कर किस तरह काम करना है और सब की जिम्मेदारियाँ बांट दी, फिर आठ दिन बाद इसी टेबल पर बैठकर अपने अपने किए गए प्रयासों को फाइनल स्थिति में लाने के लिए पुन: बैठेंगे।

जिया का व्यवहार इतना सरल और सकारात्मक होता है कि उसके साथ काम करने के लिए स्टाफ का हर सदस्य उत्साहित रहता है।

जिया ने इन आठ दिनों में कभी भी किसी भी विभाग के अधिकारियों को अकेला नहीं छोड़ा, दिन में कम से कम कई बार उनसे डिस्कस करती और उन्हें भी जिया ने कह रखा है कि जहां भी थोड़ी सी परेशानी हो उस से चर्चा कर ले।

इन सब पर चर्चा करते हुए वह अनुज को भी बताना नहीं भूलती और हर दिन की रिपोर्ट अनुज के सामने रख देती ।

लगातार की गई कोशिशों का रिजल्ट तो अच्छा ही आना था, एक महीने बाद फाइनल प्रोजेक्ट तैयार हुआ तो उसे प्रजेंट करने जिया अनुज को हैदराबाद जाना निश्चित हो गया, हालाकि उन्हें पता है कि इसमें शायद कुछ और सुधार होने की संभावना हो या कुछ फेरबदल भी किया जा सकता हैं, इन सब बातों के लिए अपना मन बना कर वहां जाने को तैयारी हो गई।

जिया ने अपने घर में मां को फिर बताया कि उसे हैदराबाद जाना है और इस बार शायद उसे समय लगे, एक-दो दिन या एक सप्ताह इसलिए वह फिक्र न करें ।

“कब जाना है बता देना, तैयारी कर दूंगी, तुम अपने काम में खूब नाम कमाओ यही कामना है मेरी,”…

” हा मां आपके आशीर्वाद से ही यह सब कर पा रही हूँ ,”…जिया मां के गले लग गई।

मां का दिल है ढेर सारी हिदायत दे दी, काम के साथ-साथ अपने आप को संभाल के रखना, खाना पीना समय पर करते रहना, अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने का आश्वासन ले लिया।

जिया को दो दिन बाद सोमवार को ही तो निकलना है उसने अपनी तैयारी भी कर ली, ज्यादा फिक्र तो उसे ऑफिस के प्रोजेक्ट को मूर्त रूप देने की है, उसमें वह हर कुछ समय बाद प्रोजेक्ट में फेरबदल कर रही है उसे अपनी फाइनल प्रोजेक्ट रिपोर्ट में कहीं से भी कोई कमजोर कड़ी नजर नहीं आने देनी हैं, फाइनल रिपोर्ट में और उसे कितना वक्त लगेगा, वह कोशिश कर रही है कि जब तक उसे संतोष नहीं हो जाता कि अब यह रिपोर्ट फाइनल है, उस पर काम करती रही और फाइनल उसने अनुज के साथ बैठकर डिस्कस किया और उसे मूर्त रूप दे दिया।

निश्चित दिन जिया अनुज हैदराबाद पहुँच गये, यह जिया का अनुज के साथ दूसरा टूर है पहले की अपेक्षा इस टूर में वह सहज है। नए काम की जिम्मेदारी है इसलिए, किसी बात पर उसका ध्यान ही नहीं है, लेकिन अनुज का साथ उसे अच्छा महसूस करा रहा है। अति उत्साहित वह अपने प्रोजेक्ट को लेकर है जिसे वह प्रजेंट करेगी और उस पर आने वाली प्रतिक्रिया का बेसब्री से इंतजार है।

जिया को अपने सफ़र में पहली बार अनुज के साथ किया गया सफर याद आ रहा है, कितनी डरी सहमी और अनिश्चितता की स्थिति में उसने पहला टूर किया था लेकिन आज वहीं आत्मविश्वास है तो काम करने का जज्बा भी, उस पर अनुज का मित्रवत व्यवहार उसे सहज बनाने के लिए मील का पत्थर साबित हो रहा है।

हैदराबाद पहुंचते ही रुकने के लिए कंपनी के गेस्ट हाउस में ही रूम बुक है सीधे वहां जाकर सामान रखा और दस बजे कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक के लिए दोनों तैयार होकर निकल गए।

क्रमश:..

अगर तुम न होते

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