आराधना

श्रृंगार किये बैठी
मन की योवना
प्रेम में पगी
डूबती उतरती
मस्त पवन में
झूम जाये
भूली अपने को
रमी अपने ही में
दीप जल उठे
मन से
मन के मिलन के
संगीत नये रच रहे
नील गगन में
स्वर मिलकर बह रहे
मधुवन को संग लिये
जीवन के समरस में
सिद्ध हो रही है
अब तो साधना
लीन जो हूँ तुम में ही
करने दो अब मुझको
निज की आराधना।

©A

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *