ग़ज़ल
सामना गर्दिशों का जरा तो करो,
अपने रब से ख़ुदारा दुआ तो करो।
अब उतारो भी चोला जरा झूठ का,
बात सच हो अगर सामना तो करो।
बाग़ की जो है रौनक मिरे यार तुम,
उस कली को भी खिलने दिया तो करो।
माफ कर देंगे गुस्ताखियाँ आपकी,
तुम उठाके नजर कुछ कहा तो करो।
ग़र गुजारो कभी रात तारों को गिन,
छत पे शब भर मिरे दिल रहा तो करो।
पास आओ महकना सीखा दूँ तुम्हें,
ये शिक़ायत हमारी सुना तो करो।
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