सुन जीवन
बेख्याली के चलते
दरक गये
नादानियों के शहर दर शहर
जाने कितने अनमोल पल।
चुक ही तो हुई
सुनहरे सपनों को परवान चढ़ा
जीतने के वह सारे दावे
जाने कहाँ लुप्त हो गये
तमाम हौसलों के पर कतर
निरउद्देश्य भटक रहे
यादों के मरूस्थल में
सांय सांय करती हवायें
भयावह दृश्य पैदा कर
दहला देती है।
रह जाते हैं शेष बस कुछ
ऊबड़-खाबड़ रास्ते
जहाँ से गुजरती है
सफल जीवन की डगर।
© A