आसमान बुनती औरतें

भाग (99)

शाम होते ही सभी अपने मिलने की जगह पर पहुँची, रानी अभी तक आई नहीं है अब तीनों एक दूसरे का मुँह देख रही है यह क्या बात हुई हम सब को बुला लिया और खुद नदारद है स्नेहा ने घड़ी तरफ देखा जो मिलने का समय तय किया था उसके पहले ही तीनों पहुँच गई है।

“ऐसी क्या बात हो सकती है मैं तो दिन भर सोचती रही पर मेरी समझ में नहीं आया, रानी के साथ भी कोई बात हो सकती है।”… स्नेहा बोली।

“पता नहीं आज तो पूरा दिन ही निकल गया रानी के चक्कर में एक तो इसके गोल गोल घुमा के बात करने की आदत अच्छी नहीं है अरे थोड़ा बहुत तो बता ही देती कि हम इस विषय पर बात करेंगे तो थोड़ा संतोष हो जाता।”… राखी थोड़ा चीढ़ने लगी है।

“कोई न कोई गंभीर बात तो होगी वरना वह इतनी हड़बड़ी में बताती, हो सकता हो कि वह खुद अभी तक समझ ही नहीं पा रही हो की बात कहाँ से शुरू करेगी, यह भी हो सकता है दिन भर वह यही सोच रही हो कि हमारे सामने किस तरह बात रखेगी।”… हर्षा ने रानी का पक्ष लेते हुए कहा।

“यह बात तो ठीक है पर हम ही लोग तो ज्यादा उत्साहित हो रहे है उससे मिलने के लिए समय से पहले चले आये, अपनी बातें करें उसकी बात क्यों कर रहे हैं, उसे जब आना है वह आ ही जाएगी हम फिक्र क्यों करें, हमें यह मौका मिला है तो हम अपनी ही बातें करें न।”… स्नेहा ने सुझाव दिया।

“हां राखी अब तुम बताओ रमन कब तक आयेंगे और तुम लोगों ने क्या सोचा है ।”…हर्षा ने बात का रुख पलटा।

“निश्चित तो अभी कुछ नहीं हुआ है चर्चा ही चल रही है कि बहुत जल्दी हो सकता है आगामी महीनों में या अगले ही महीने हम लोग कोर्ट मैरिज करेंगे, तब तक घर वाले भी इस बात के लिए लगभग राजी ही हो जायेंगे क्योंकि रमन ने जिस तरह से उन्हें समझाया है कहीं न कहीं घर वाले इस बात को समझ रहे हैं।”… राखी ने बताया।

“स्नेहा अगर आज रानी कुछ ऐसी ही बात बताती है तो यह अच्छी बात है अब हमें सिर्फ तुम्हारी ही फिक्र है तुम भी कहीं न कहीं अपनी बात चलाओ या फिर कोई दोस्त बनाओ, अगर घरवाले कोई रिश्ता ढूंढ रहे हैं तो उसे ही समझने की कोशिश करो, उस लड़के से मिलो, बात करो और देखो स्नेहा, इस विषय को बिल्कुल भी अनदेखा मत करो यह हमारे जीवन का एक पाठ है और हमें इसे अदा ही करना है चाहे किसी भी परिस्थितियों में करो क्योंकि इसके बाद की जिंदगी में बहुत ही मुश्किल होती है हमें अपने कर्म कभी नहीं छोड़ना है हमें काम करना है तो करते रहे लेकिन एक खुशहाल जीवन के भी तो हम हकदार हैं।”… राखी ने स्नेहा को समझाते हुए कहां।

“राखी, तुम सही कह रही हो इस बात से बचा नहीं जा सकता है और न ही इसे अपने जीवन में लाने से रोका जा सकता है हमारा सामाजिक ढांचा ही ऐसा है कि माता-पिता आपको किसी न किसी के साथ तमाम उम्र के लिए बांधे, इसमें उनका स्वार्थ नहीं है इसमें उनकी अपनी सुरक्षा है कि उनकी बेटियाँ सुरक्षित हाथ में है, यहाँ सुरक्षित रह सकती है और भी जो कुछ जीवन में करना चाहे कर सकती है, समाज में यह कुछ ऐसे दायरे बनाये हैं, लड़की मां बाप के साथ असुरक्षित रहती है और पति के घर जाते ही सुरक्षित हो जाती है ऐसा क्यों होता है ? यह बात तो आज तक किसी को समझ में नहीं आई।”… हर्षा ने अपने ज्ञान के अनुसार व्याख्या की।

हां हर्ष अब लगता है जीवन के यह कुछ पहलू हैं जिन्हें आपको जीना होगा, सामाजिक ढांचा ऐसा है कि आपको जीना मुश्किल कर देंगे इससे बेहतर है कि कुछ नहीं तो कुछ महीने में अगर जीवन साथी के साथ तालमेल बैठ जाता है तो एक सुरक्षित दीवाल के साथ जीवन गुजारा जा सकता है जहाँ आपको एक घर और सुरक्षा की संभावनाएँ हो, मैं यह नहीं कहती कि वहाँ आप सतर्क न रहे, वहाँ भी आपको सतर्क रहना है लेकिन एक सुरक्षा कवच समाज की नजरों में बन जाता है जीना तो आपको अपने हिसाब से ही पड़ता है और वहाँ भी अपनी सुरक्षा आपको करनी होती है अपने अधिकारों के लिए अपने मान सम्मान के लिए आपको वहाँ भी संघर्ष करना है लेकिन एक दायरा निश्चित हो जाता है उस दायरे के अंदर करना है।”… राखी बोली।

क्रमश:..

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