आसमान बुनती औरतें

भाग (127)

लौटते में विनय ने हर्षा को उसके ऑफिस छोड़ा फिर अपने ऑफिस निकल गया।आज का दिन उन दोनों के लिए बहुत ही बेहतरीन दिन रहा, हर्षा इस बात के लिए खुश है कि उसने पहल करना शुरू की तो पहला कदम ने हिम्मत मांगी लेकिन रास्ते इतने भी मुश्किल नहीं होते अपने आप बनते चले जाते हैं बस पहला ही कदम बढ़ाने की जरूरत होती है और आज वह इसलिए खुश है क्योंकि उसने कितनी आसानी से विनय के साथ आधा दिन गुजारा और बेहद खुश है यह खुशी शायद कभी नहीं मिलती अगर वह हिम्मत नहीं करती।

ऑफिस पहुँचते ही देखा तो आज राखी अभी तक वापस नहीं आई है उसका वैसे भी लगभग चार या पांच बजे तक वापस आने का समय होता है, यह निश्चित हुआ था कि रविवार को रघुवीर के घर चलना है उसने तो कहा भी था कि वह गाड़ी भेज देगा और आप सब आ जाइए, लेकिन राखी ने मना कर दिया था अपनी सुविधा से आ जाएंगे कहकर, राखी ने ठीक ही किया, कहा बुलाते गाड़ी, स्नेहा तो अक्सर देरी ही करती है, जाने से पहले ही बैचेनी से गीले रहते।

मन में ख्याल आ रहा है कि रघुवीर सभी को क्यों बुला रहा है रानी अकेले को बुलाता और उससे बात कर लेता, वह हर्षा का दोस्त है इसलिए चाह रहा था कि सभी एक बार आकर घर परिवार से मिले, धीर गंभीर व्यक्तित्व का रघुवीर वैसे तो बहुत अच्छा लगा है, शरारत में भी कम तो नहीं है, लेकिन अब हर्षा को लग रहा है कि वह लोग जाकर क्या करेंगे बिलावजह सभी ने जाने की स्वीकृति दे दी थी अब क्या कह सकते हैं जाना ही होगा।

“हेलो, हाँ स्नेहा बोलो।”… फोन की घंटी बजी तो हर्षा ने रिसिवर उठाया।

“कल का प्रोग्राम पक्का है।”… स्नेहा ने पूछा।

“हाँ अभी तक तो पक्का है शाम को राखी आती है तो फाइनल बात करते हैं और रानी से भी बात कर लेंगे तब तुम्हें बताते हैं कि क्या हुआ है और कैसे चल रहे है ठीक है।”… हर्षा बोली।

“ओके बाय, मुझे बता देना।”…

हर्षा ने रिसिवर रखते हुए देखा सामने रमन चला रहा है यह अचानक आज कैसे ?

क्रमश:..

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