आसमान बुनती औरतें

भाग (128)

“नमस्कार, आप यहाँ कैसे, सॉरी.. सॉरी मेरा मतलब है कि आप आने वाले हैं राखी से चुकी मुलाकात नहीं हुई तो पता भी नहीं चला।”…हर्षा अपने ही बात पर उलझी गई।

“अरे आप इतना हैरान क्यों हो रही है, में काम से ही आया हूँ।”…रमन को भी हर्षा का व्यवहार अजीब लगा।

“नहीं ऐसी बात नहीं है, मैं किसी उलझन में, इसलिए… हर्षा आगे कुछ कहती, क्या कहती बोलने को कुछ था ही नहीं, कभी-कभी खुद का व्यवहार ही ऐसा हो जाता है कि खुद से ही नहीं सम्हलता।

“ऐसा है हर्ष जी, मुझे पता है कि आप लोग कल रघुवीर के घर जाने वाले हैं इसलिए राखी से बात हुई थी और जब मैंने कहाँ कि मैं भी साथ चलूँगा तो उसने कह दिया था कि आप आ जाओ।”… रमन ने बताया।

हर्षा अचंभित रह गई यह कब और कैसे हो गया, यह बात तो हुई ही नहीं थी कि रमन साथ चलेंगे फिर अचानक कहीं ऐसा तो नहीं कि विनय से बात की तो पता चला वह भी चलने के लिए तैयार हो जाये हर्षा को अजीब सी बेचैनी होने लगी,रघुवीर को क्या बतायेंगे? पता नहीं राखी ने बात की भी या नहीं पहले ही रघुवीर को बता देना ठीक रहेगा।

हर्षा को अब बेचैनी होने लगी कि विनय को भी बताये क्या? लेकिन विनय को क्यों साथ लेना है अभी तो मैंने अपने सभी दोस्तों को बताया भी नहीं है अच्छा भी नहीं लगेगा बेहतर है कि रानी को ही जाना चाहिए था सारे के सारे जायेंगे उसके यहाँ अब हर्षा को कोफ्त हो रही।

रमन तो अपने कमरे में चला गया लेकिन वह तो वही खड़ी रह गई अब मन कर रहा है कि रघुवीर को फोन करके बता दूँ या राखी ही बताये तो ठीक रहेगा। अजीब सी पशोपेश में है यह सब क्या हो रहा है क्या अपने मन का कुछ कर दे नहीं पाएंगे राखी भी न रमन को क्यों बुला लिया। बहुत देर तक सोचने के बाद उसे लगा कि रघुवीर हो खुद ही फोन करके बता देना ठीक रहेगा उसे व्यवस्था भी तो करनी होगी अगर सदस्य बढ़ते हैं तो।

काफी देर तक इस पर विचार करती है फिर उसने रघुवीर को फोन लगाने का निश्चय कर लिया।

क्रमश:..

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