आसमान बुनती औरतें

भाग (129)

“हलो रघु।”…हर्षा से नहीं रहा गया।

“हाय हर्षा, कैसी हो।”…

“मैं ठीक हूँ, एक बात करनी है इसलिए फोन लगा लिया, व्यस्त तो नहीं हो।”…हर्षा ने पूछा।

“हाँ बोलो क्या बात है, कल तुम सभी का आना नहीं हो रहा है क्या ?”…

“नहीं.. नहीं ऐसा नहीं है, इसी से संबंधित बात है।”…

“अरे तो इजाज़त लेने की जरूरत है क्या ?”…

“हैं तो नहीं पर थोड़ा पशोपेश में हूँ, राखी ने कोई बात कि क्या ?”…

“नहीं कोई बात नहीं हुई, बात क्या है हर्षा।”…

“वो हमारे साथ एक सदस्य और आ रहे हैं।”…

“तो ठीक है इसमें परेशान होने कि क्या बात है, मेरे घर भी कल मेरा दोस्त आ रहा है।”…

“मैं बताना चाह रही थी कि वह …

“अब बस करो इतनी सी बात पर परेशान हो, कल आप सब आ रहे हो निश्चित है, ठीक है।”…रधुवीर ने हर्षा की बात बीच में ही काटते हुए कहां।

“ठीक है बाय।”…

“बाय बाय अपना ध्यान रखों।”…

हर्षा ने रिसीवर रखा, सोचने लगी कि वह नाहक ही परेशान हो रही है रघुवीर को कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन उसे ही बड़ा अजीब लग रहा है अब ऐसे में क्या किया जा सकता है जब कोई अचानक आ जाये उसके यहाँ भी तो कोई आ ही रहा है।

क्रमश:..

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