आसमान बुनती औरतें
उपन्यास भाग (136)
खूब सारे पैकेट हाथ में लिए हुए वह व्यक्ति अंदर आया और उसने एक टेबल पर करीने से सब सामान सजा दिया।
रघुवीर की मम्मी ने टेबल के पास जाकर एक-एक सामान उठाया और आरती की थाली उठाकर रानी को तिलक किया और उसे उपहार स्वरूप कई पैकेट उसकी झोली में डाल दिये।
रघुवीर के पापा भी उठे और उन्होंने अपनी जेब से पैसे निकालकर रानी की झोली में रखें उसके सर से पैसे न्योछावर कर टेबल पर रख दिये, सर पर हाथ रख ढेर सारा आशीर्वाद दिया।
रघुवीर बड़े गौर से रानी के चेहरे को देख रहा है उस चेहरे पर शर्म है माँ के लिए आदर और सम्मान का भाव है क्योंकि सामान गोद में रखते ही रानी ने रघुवीर की माँ पिता के पैर छू लिए ।
हमारा बहुत सा आचरण इस बात पर निर्भर करता है कि हम किस तरह का व्यवहार करते हैं और उस व्यवहार से हमारे व्यक्तित्व का भी आभास होता है कि हम किस स्वभाव के हैं।
अब रघुवीर की मम्मी आरती की थाली लेकर तीनों लड़कियों की तरफ पलटी तीनों को तिलक किया और उन्हें भी उपहार स्वरूप पैकेट गिफ्ट करने लगी।
“आंटी जी, नहीं यह सब हमें मत दीजिए यह सब हक रानी का है आप प्लीज उसे ही दिजिए।”… राखी बीच में बोल दी।
“हमें तो आपका आशीर्वाद मिल गया यही काफी है।”… कहते हुए हर्षा ने भी रघुवीर की माँ के चरण छू लिए।
“आशीर्वाद समझकर ही रखो बेटा।”…रघुवीर की माँ ने कहते हुए पैकेट राखी को पकड़ा दिया आदेशात्मक आशीर्वाद को नकारने की हिम्मत किसी में भी नहीं है।
बाहर शाम उतर आई है हर्षा ने घड़ी की तरफ देखा तो छः बज गये है घर पहुँचते तक आठ तो बज ही जायेगी, यह नया रास्ता है, हमें अब निकलना चाहिेए। हर्षा ने राखी के तरफ देखा और चलने का इशारा किया।
“आंटी जी हम लोग अब निकलते हैं शाम भी हो रही है समय पर घर पहुँच जायेगे वरना घर वालों को फिक्र होगी ।”…राखी बोली।
“तुम परेशान न हो बेटा, हम छोड़वा देंगे, पर हाँ समय पर घर पहुँचना अच्छी बात है, रघुवीर गाड़ी निकलवा दो, तुम साथ जाओ।”… रघुवीर की माँ बोली।
“जी मम्मी।”… रघुवीर किसी को फोन करने लगा।
” रानी, हम बहुत जल्दी तुम्हारे मम्मी-पापा से मिलने आयेगे और उन्हें अपने घर भी बुलायेंगे।”… रघुवीर की माँ बोली।
“तुम सभी से मिलकर बहुत अच्छा लगा बेटा हमने सुना जरूर था कि आप चारों दोस्त हैं पर आपकी यह दोस्ती तमाम उम्र बनी रहे ऐसी हमारी शुभकामनाएं और यह घर रानी का ही नहीं है आप सब का भी है आते जाते रहना, हमें अच्छा लगेगा।”…रघु के डैडी बोले।
“जी अंकल जी हमें भी आप सब से मिलकर अच्छा लगा।”…राखी बोली।
औपचारिक चर्चाओं के बीच कमरे के दरवाजे तक रघु के पापा छोड़ने आए मम्मी ने वहीं से हम लोगों को विदा कह दिया रघु ने गाड़ी निकलवाई और चारों सवार होकर चल दिए।
क्रमश:..