आसमान बुनती औरतें

भाग (155)

विनय अपनी ही उधेड़बुन में व्यस्त हैं हर्षा को इस रूप को देखकर वह आश्चर्य में है हर्षा बहुत खूबसूरत है, मन की सुंदरता पहले ही पहचान गया था, सहज मुस्कान जिससे कोई भी उदासीन व्यक्ति देखे तो आनंदित हो जाये और वह तो हर्षा को कई- कई बार देखना चाहता है इसके बाद भी उसकी आँखें नहीं भर्ती, मन नहीं भरता, हर बार तृष्णा सी लगी रहती है, बार-बार लगता है कि अभी तो हर्षा कि सुंदरता का कुछ भाग ही देखा है एक चाहत सी लगी रहती है, कभी तुम साँझ की सुनहरी रोशनी में खूबसूरत ऊर्जा लिए रहती हो, जहाँ लगता है कि शाम को भी उषा कि किरण बिखरी हुई है कितनी ही बार देखो, हर बार लगता है कि प्यासा ही हूँ तुम्हें इतना कुछ है कि एक बार में तो देखा ही नहीं जाता। तुम्हारे मन की सुंदरता ही तुम्हारे चेहरे पर झलकती है, उपमाएँ तो कम पड़ जाती है।

“मम्मी जी, सर को कॉफी पिलाई।”…हर्षा ने जब थोड़ी देर देखा कि सर कहीं खोए हुए हैं तो ध्यान भंग करने के लिए बोली।

“अभी नहीं पिलाई है विनय ने मना कर दिया था, अब तुम बैठो मैं बना कर लाती हूँ।”… कहती हुई मम्मी जी रसोई घर की तरफ चली गई। हर्षा की आवाज सुनते ही विनय वर्तमान में लौट आया।

“सर कोई काम था या आप इस तरफ निकले थे मुझे फोन कर लेते, मैं और जल्दी आ जाती।”…हर्षा को विनय का उसके लिए इंतजार करना अच्छा नहीं लगा।

“नहीं ऐसा कोई काम नहीं था बस थोड़ा सा यही आगे जा रहा था सोचा आंटी जी से मिलता हुआ जाऊँ इसलिए आ गया, आप परेशान न हो।”…विनय ने बात को बहुत सहज करने के लिए कहां।

“कभी अपनी इतनी बात ही नहीं हुई सर, कि मैं आपको अपनी सहेलियों के बारे में बताती, मेरी सहेली है रानी आज उसी की सगाई में गई थी, मेरी एक सहेली राखी है जिससे आप कई बार मिल चुके हैं एक और है स्नेहा जिसके भाई कि शादी में आपको आने के लिए कहाँ था, हम चार सहेलियाँ हैं एक दूसरे के घर कोई भी प्रोग्राम होता है तो शामिल हो जाते हैं।”… हर्षा को विनय ने पूछा नहीं है लेकिन वह बिना कहे ही समझ गई कि वह जानना तो चाहता है कि मैं आखिर गई कहाँ थी।

“बहुत अच्छी बात है जीवन में दोस्तों की बहुत अहमियत होती है और खासकर ऐसे दोस्त जिनके हम परिवारों से भी जुड़े होते हैं और उनकी हर खुशी, गम में शामिल होकर हमें अच्छा लगता है।”… विनय ने यह कह कर हर्षा के मन को शीतलता ही पहुँचाई।

हर्षा को हमेशा लगता था कि जिसे थोड़ा भी ऐसा लगने लगता है कि अधिकार है वह जबरदस्ती इन छोटी-छोटी बातों को राई का पहाड़ बनाने से बाज नहीं आते, लड़कियों को बपौती जो समझने लगते है, उसके उठने, बैठने, पहनने, आने-जाने सब पर उन्हें ऐसा लगता है कि बिना उनकी इजाजत के कोई भी काम कैसे किया गया, यह पौरुष दम्भ अभी तक तो विनय के व्यवहार में नजर नहीं आया है।

इतने में कुलवीर कॉफी लेकर आ गई और हर्षा ने मम्मी जी के हाथ से कॉफी कि ट्रे लेकर नीचे रख दी, कप में कॉफी डालकर विनय कि ओर बढ़ा दी,।

“मम्मी जी आपकी तबीयत ठीक है आप इस समय घर पर !”… कुलवीर को कॉफ़ी देते हुए याद आया कि मम्मी जी घर पर नानी जी पैलेस में है मम्मी की तबीयत तो खराब नहीं है सोचते ही उसने कुलवीर का माथा छुआ।

क्रमश:..

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