आसमान बुनती औरतें
भाग (156)
“नहीं आज पलेस में ज्यादा काम नहीं था और मुझे कुछ आराम भी करना था इसलिए मैं घर पर आ गई थी बिजी भी आज जल्दी आ जायेंगी, तुम बताओ तुम्हारी सहेली कि सगाई कैसी रही।”… कुलवीर ने पूछा।
“बहुत अच्छी रही मम्मी जी, हम तीन सहेलियाँ थी बाकी उनके परिवार के ही लोग थे मुश्किल से तीस लोग होंगे, बहुत अच्छे से सब कुछ हो गया।”… हर्षा ने बताया।
“यह बहुत अच्छा हुआ लड़कियों कि समय पर शादी हो जाये और अच्छा घर, वर मिल जाये तो माँ-बाप कि आधी से ज्यादा चिंता दूर हो जाती है, विनय तुम कब शादी के विषय में सोच रहे हो तुम्हें भी कर लेनी चाहिए, मैं तो हर्षा को भी कहती हूँ, समय रहते तुम्हारी पसंद हो तो हमें बता देना।”… कुलवीर बोली।
दोनों क्या बोलते कुलवीर ने सवाल ही ऐसा कर दिया कि दोनों मौन।
“जी मैं तो तैयार हूँ और मेरे परिवार के सब तैयार है अब सामने वाली पार्टी तैयार हो जायेगी तब बात आगे बढ़ेगी ।”…आज विनय शरारत पर उतर आया मुस्कुराते हुए हर्षा की तरफ देखा। हर्षा ने सोचा नहीं था कि विनय खुलकर इस तरह बोल देगा।
“इसमें कौन सी बड़ी बात है अगर तैयार नहीं है तो मनाओ उन्हें, ज्यादा इंतजार करने में कई बार ऐसा होता है कि हम अपने दिल की बात दिल में रख लेते हैं और सामने कि बाजी पलट जाती है ऐसा न हो इसलिए अपने दिल की बात अपने घर वालों को समय रहते बता देना चाहिए, वह भी प्रयास कर सकते हैं।”… कुलवीर बोली।
“सही कह रही है आप, यह बात तो ठीक है लेकिन बताया उसको जाता है जिसे पता न हो, कैसे बताये सब कुछ तो पता है जवाब कोई नहीं आ रहा है तो इंतजार कर रहा हूँ।”.. विनय बोला उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान है और हर्षा के चेहरे पर नजर।
हर्षा समझ गई कि कहीं ऐसा न हो कि विनय सर कहने के लिए उतावले हैं और मम्मी जी पूछने के लिए और दोनों सामने खुलकर आ जाये, उसे ही कुछ करना होगा क्या करें ? क्या बोले ? कुछ समझ नहीं आ रहा, कैसे इन लोगों को इस विषय से ध्यान हटाएँ, ऑफिस का भी कोई ऐसा विषय नहीं है जिस पर बात कि जाये, बड़ी असमंजस की स्थिति में फंसी है हर्षा।
“ऐसा है यह विषय जितना संवेदनशील और भावनात्मक है उतना ही महत्वपूर्ण भी है और इसके लिए आपका नजरिया, आपकी सोच, आपकी समझ स्पष्ट होनी चाहिए, आप क्या चाहते हैं आपको पता होना चाहिए तभी जाकर कोई निर्णय लेना चाहिए आजकल तो बच्चों को पूरी आजादी है वह अपना अच्छा बुरा सोच सकते हैं इसमें माँ-बाप का कोई दबाव नहीं होता तो बेहतर सोचना भी चाहिए।”… कुलवीर ने विषय को आगे बढ़ाया।
“इसीलिए आजकल के युवा वर्ग निश्चित समय कि परिपक्व उम्र में ही निर्णय लिया जाता है जहाँ स्वतंत्रता होती है वहाँ सोच का दायरा भी संकुचित हो जाता है जबकि आप लोगों के समय में आपके पैरेंट्स ने ही आपके भविष्य का निर्णय लिया होगा लेकिन जब खुद के निर्णय की बारी आती है तो बहुत कुछ सोचना होता है और उम्र का एक पड़ाव भी आ जाता है यहाँ जिंदगी के साथ और जीवन साथी के साथ सामंजस्य बैठाने का एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा होता है इसलिए मुझे लगता है कि युवा वर्ग बहुत समय ले लेते हैं इस विषय को सोचने के लिए।”… विनय ने विषय को विस्तार दे दिया।
“सही कह रहे हो, हमारे समय लड़कियों पर कोई जिम्मेदारी नहीं हुआ करती थी उसे घर संभालना होता था लड़के पर भी ज्यादा जिम्मेदारी नहीं होती थी परिवार के सदस्य जब यह निर्णय लेते थे तो उसकी गृहस्थी को चलाने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की हुआ करती थी अगर कोई कमी रह जाये तो दोनों तरफ के परिवार मिलकर उस कमी को पूरा करके उसकी गृहस्थी चला देते थे, आज ऐसा कुछ तो है नहीं सभी कुछ खुद ही को निर्णय लेना है और खुद ही को गृहस्थी चलाना है यह युग परिवर्तन ही है जिसमें विवेक का इस्तेमाल करने का पूरा पूरा मौका मिलता है ।”… कुलवीर बोली।
क्रमश:..