आसमान बुनती औरतें

भाग (157)

“ज्यादा सोच समझ के चक्कर में अक्सर युवा चुंकि अनुभवहीन होता है और उसे यह जानकारी ही नहीं होती कि परिवार को कब और कैसे शुरू करना है अपना वह जीवन का कीमती समय निकाल देता है जिसे ईश्वर ने स्वर्णिम समय के रूप में दिया है, बहुत सुख सुविधा और सामंजस बैठाने के चक्कर में युवा वर्ग उस समय को इसलिए भी निकाल देता है कि उसकी चाहत भौतिक सुख सुविधा पर ज्यादा हो जाती है आज व्यवस्थित हो जाऊँ, अच्छी नौकरी हो जाये, गाड़ी ले ली जाये, घर हो जाये बस यही सब के फेर में लगा रहता है।:.. विनय ने यथार्थ सामने रखा।

“बिल्कुल सही कहाँ तुमने विनय, सोच का दायरा बड़ा है तो समझ कि छुट्टी हो गई है और अनुभव तो बिल्कुल भी नहीं है ऐसे में परिवार तो बन रहे हैं लेकिन किन शर्तों पर, जहाँ सिर्फ एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी होकर रह गए हैं अब देखों बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के फेर में उसका बचपन में छीन लेते हैं पता नहीं समय की कौनसी यह परिभाषा है कि युवा वर्ग इसे आसानी से समझ रहा है और इसके दुष्परिणाम बाद में झेल रहा है।”… कुलवीर ने जिस तरह जीवन के यथार्थ को रखा हर्षा आश्चर्यचकित हो रही है कि मम्मी जी इतना गंभीरता से भी सोचती है।

“हर्षा इस गंभीर विषय पर जहाँ विचारों का आदान-प्रदान हो रहा है और अच्छी बहस भी है लेकिन उसे अंदर से डर लग रहा है कि विनय कहीं खुलकर मम्मी जी के सामने बोल न दे, वह चाहती है कि मम्मी जी को वह खुद यह बात बताये किसी और से पता लगे तो बुरा ही लगेगा हालाकि उसने कई बार इशारों में मम्मी जी को बताने की कोशिश कर चुंकि है। लेकिन स्पष्ट विनय का नाम नहीं लिया।

“हर्षा जी इस विषय में आपके क्या विचार है, आज हमारे सामने अनुभव भी बैठा है और युवा वर्ग भी तो क्यों न अपने दिल की बात खुल कर रखें।”… विनय ने सीधे हर्षा को बोल दिया।

“जी,…हर्षा इस बात पर एकदम से घबरा गई यह क्या बोल दिया विनय ने, आज विनय किस दूसरे की मूड में है और शायद इंतजार करते-करते थक गया है इसलिए आज हो सकता है कि मम्मी जी के सामने अपनी बात रख दे।

“मैं तो कई बार इससे इस विषय में बात कर चुकी हूँ और यह हर बार टाल देती है पता नहीं अपने आप पर ही विश्वास नहीं या अभी तक जीवन में कोई आया ही नहीं है तो क्या बताये, युवा वर्ग कि यह परेशानी भी तो है कि वह अपने जीवन में किसी को आसानी से आने भी नहीं देते, हमेशा उनका दिमाग तर्क-कुतर्क करता रहता है ऐसे में कोई कैसे पसंद आ सकता है।”… कुलवीर ने आज मौके को छोड़ा नहीं और सुना ही दिया।

“लेकिन मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ, अपने परिवार को इतना तो बता ही चुका हूँ कि बहुत जल्दी आपको अपनी पसंद बता दूँगा, अब मैं चाहता हूँ कि आपको भी बताऊँ आप मेरी बात सुनेंगी।”… विनय ने सीधा सवाल कुलवीर से पूछ लिया।

“अरे इसमें पूछने की क्या बात है तुम्हें लगता है कि तुम्हें मुझे भी बताना चाहिए तो बिल्कुल बता सकते हो, यह बहुत जरूरी होता है कि आप अपने दिल की बात अपने उन लोगों तक पहुँचाओ जो आप के विषय में अच्छा सोचते हैं और आपकी चिंता करते हैं यह तो बहुत अच्छी बात है बिल्कुल कह सकते हो।”…कुलवीर ने भी उत्साह दर्शाया कि वह विनय की बात सुनने के लिए तत्पर है।

विनय ने हर्षा की तरफ देखा उसके चेहरे पर लाज कि लाली के साथ-साथ जो घबराहट है वह साफ नजर आ रही है जहाँ विनय का मन हुआ कि न बताये वही उसका दिल उसे कहने के लिए मजबूर करने लगा, हर्षा कभी नहीं बतायेगी वह इस तरह की लड़की है ही नहीं कि खुलकर अपनी इच्छाओं को रख सकें, ऐसे लोग जो परिस्थितियों से जूझ कर आते हैं वह अपने बारे में सोच ही नहीं पाते उनका हमेशा लक्ष्य होता है हमारे अपने सुखी व संपन्न रहें उनके लिए यह एक विषय या कहे कि वह अपनी खुशी को दरकिनार कर देते हैं।

क्रमश:..

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