आसमान बुनती औरतें
भाग (158)
हर्षा तो कही खो गई, उसे लगने लगा कि यह प्रसंग अब खत्म हो, उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा है और वह नीचे डूबती जाना चाहती है वह समझ ही नहीं पा रही है कि अगर विनय ने कुछ कहाँ तो वह मम्मी जी का सामना कैसे करेगी, इस विषय पर भी अगर वह कुछ कह नहीं पाई तो वाकई में बहुत ही कमजोर हैं, उसे तब लगा भी था कि मम्मी जी, अपने अधिकार के लिए नहीं खड़ी हो पा रही है कैसे हिम्मत नहीं जुटा पा रही है बहुत कोफ्त होती थी कि खुद के लिए हिम्मत नहीं जुटा पा रही है लेकिन आज वह भी तो इन परिस्थिति में निर्णय लेने के लिए खुद खड़ी नहीं हो पा रही है, सच में हर नारी कि यह कैसी विडंबना है कि दूसरों को सहारा तो दे सकती है लेकिन अपनों से ही लड़ने का साहस नहीं कर पाती, स्त्री में ही होता है यह गुण या पुरुषों में भी है यह।
हर्षा एक पल में जाने क्या-क्या सोचती चली गई, इसी बीच कॉफी खत्म हुई और विनय जाने के लिए खड़ा हो गया।
“अब मैं चलता हूँ मैं माफी चाहता हूँ कि मैं इस समय आ कर आपको परेशान किया।”…विनय समझ रहा है कि हर्ष नहीं चाहती कि इस विषय पर बात हो और ठीक भी है यह ऐसा विषय है उसे सबसे पहले आंटी जी से खुद बात करनी होगी।
“अरे थोड़ी देर और बैठो, बिजी भी आने वाली है मिलकर जाना।”… कुलवीर ने अचानक चलने कि बात पर बोली।
“मैं फिर कभी आ जाऊँगा अभी निकलता हूँ।”…जाने का मन तो उसका भी नहीं कर रहा है हर्षा कि चुप्पी उसे कहीं न कहीं चुभ भी रही है।
“कुछ देर और रुक जाइए सर, नानी आती ही होंगी आप उनसे भी मिल कर जाइये।”…आखिर हर्षा ने कह ही दिया।
“नानी जी, से मैं फिर कभी मिलूँगा अभी निकलता हूँ मन किया था इसलिए चला आया।”… विनय कहता हुआ दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
“यह तो तुमने ठीक किया बेटा और जब भी मन करे आगे भी चले आना, हमें भी अच्छा लगता है कभी संकोच मत करना।”… कुलवीर ने उसे एहसास कराया कि वह उसके आने से खुश है।
“बिल्कुल आंटीजी, आऊँगा, आप परेशान न हो आप लोग बैठिए।”.. विनय ने हर्षा की तरफ देखा चेहरे पर हल्का सा तनाव है समझ गया कि उसे लग रहा है कि अचानक क्या हुआ है इस तरह उसका उठ कर जाना अच्छा भी नहीं लग रहा है यह स्पष्ट चेहरे पर नजर आ रहा है कोई बात नहीं एहसास होना बहुत जरूरी है किसी कि उपस्थिति हमें अच्छी लगती भी या नहीं।
“हर्षा, गाड़ी तक छोड़ कर आओ, जब भी मन हो चले आना बेटा, ठीक है, अपना ध्यान रखना।”… कुलवीर बोली।
“ठीक है आंटी जी, नमस्कार, आप भी अपना ध्यान रखिए।”…विनय कहता हुआ मुख्य द्वार से बाहर निकल गया।
हर्षा लगभग भागती-दौड़ती हुई सी गाड़ी तक आ गई। विनय ने गाड़ी का गेट खोला और बैठ गया।
क्रमश:..