आसमान बुनती औरतें

भाग (159)

हर्षा को कुछ सुझा नहीं और वह दूसरी तरफ का गेट खोल कर आगे की सीट पर बैठ गई।

यह कुछ ऐसे इसारे होते हैं जो सिर्फ दिल ही समझ पाता हैं और हर्षा दिल की बात समझ गई कि विनय कुछ बात करना चाहता है और विनय कि भाव-भंगिमा ने समझाया है कि वह अकेले में कुछ बात करना चाहता है यह कितना बेहतरीन तरीका है जो मुँह से नहीं बोला जाता और खुद ब खुद समझ आ जाता है दिल उसे पकड़ जो लेता है।

इशारों की परिभाषा और भाव-भंगिमा की प्रस्तुति हम तभी समझ पाते हैं जब हम किसी के बहुत करीब हो, उसकी आहट, उसके पैरों कि पदचाप और उसकी सांसों की सरगम को महसूस करते हैं तभी हम इस विधा में पारंगत होते जाते हैं यह हर कोई को पता नहीं होता कि उसमें यह खूबी है यह तो समय और समझ के साथ दिल की गहराई से जब हम किसी के साथ जुड़ते हैं तभी यह खूबी नजर आती है।

हर्षा की इस हरकत पर विनय के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई, बगल में बैठा देखकर वह समझ गया कि वह भी जानने को उत्सुक है कि वह क्या बात करना चाहता है और यहाँ आने का मकसद सिर्फ हर्षा से कुछ कहना था।

“सर, आप कुछ कहना चाहते हैं, मैं सुनने के लिए तैयार हूँ प्लीज बताइए क्या बात है।”… हर्षा गाड़ी की सीट पर ठीक से बैठते हुए बोली।

“क्यों सुननी है बात, ऐसी कोई महत्वपूर्ण भी नहीं है और सामान्य सी बात के लिए इतनी अधीरता क्यों?”… विनय शरारती लहजे में बोला।

“अच्छा अब आप सीधे-सीधे कह दीजिए बात को घुमाइये नहीं वरना मुझे समझ आ जाएगा कि आप सिर्फ मुझे बहका रहे हैं।”… हर्षा ने बहुत ही ठहरे हुए अंदाज में कहां।

शब्दों की शीतलता ने विनय को अंदर तक हिला दिया मानों बहुत धीरे से बहुत ही धमकाकर बोला गया हो। कुछ देर पलक झपकाये बिना हर्षा को देखता रहा, हर्षा की नजरों में धीरे-धीरे शरारत के साथ-साथ मुस्कान भी झलकने लगी। विनय भी हर्षा कि इस अदा पर मुस्कुराए बिना नहीं रह पाया समझ रहा है कि बहुत शरारती है, यह गुण आज पता चल रहा है कहीं से भी पुरानी वाली सीधी-सादी हर्षा नजर नहीं आ रही है यह तो तेजतर्रार और शरारती नजर आ रही है।

“इस रूप में तो और भी खूबसूरत लगती हो और कितने गुण छुपा रखे हैं यह भी बता दो ।”…चेहरे पर मुस्कान लिए ही विनय बोला।

अभी आपने हमें देखा कहाँ है कई रुप और देखने को मिल सकते हैं, मैं आसानी से समझ आने वाली नहीं हूँ।”…हर्षा तुरंत संभल गई।

विनय खुलकर खिलखिला कर हँस दिया, विनय तो हर्षा कि इस शरारत पर लाजवाब हुए जा रहा है।

आज उसके भी तो नए रूप देख रही है हर्षा, विनय को इस तरह बिंदास हंसते हुए पहली बार देख रही है इतना धीर-गंभीर और समझदार आदमी हंसता भी है यह सोचकर ही उसे रोमांचित हो रही है हम एक ही इंसान को जितनी बार मिलते हैं उतनी बार अलग स्वभाव, अलग-अलग रूप को देखते हैं यह बात कितनी सच है आज समझ आ रही है हमेशा से लगता रहा कि विनय धीर गंभीरतापूर्वक और समझदारी वाली बातें ही करता रहता है शरारत और खुश रहना तो उसे जैसे आता ही नहीं लेकिन हर्षा गलत साबित हो रही है मुस्कुराने के साथ-साथ खुलकर हंसना और शरारत करना भी विनय को आता है सोचते हुए हर्षा के चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गई।

“हर्षा जी मैं आपका एक रूप और देखना चाहता हूँ।”… विनय के चेहरे पर शरारत झलक रही है।

“कौन सा रूप है वह भी बता दे।”…

“बता दूँ डरता हूँ इतनी अच्छी खासे माहौल में मेरी बात सुनते ही दरार न पड़ जाये।”… विनय कहने के पहले पुख्ता करना चाहता है कि हर्षा को बुरा न माने।

“अब कह भी दिजिए मुझे बुरा नहीं लगेगा हाँ अगर आप नहीं बतायेंगे तो बुरा जरूर लगेगा।”… हर्षा ने भी बात को हवा दी।

“एक बार और सोच लीजिए कहीं ऐसा न हो कि आप बाद में कहें कि मैंने तो ऐसा नहीं सोचा था।”… विनय ने आवाज दबाकर पतली करते हुए शरारती अंदाज में कहां।

हर्षा खिलखिला कर हँस दी, विनय के बात करने के अंदाज पर खुलकर हँस रही है, वह लगातार हँस रही है, अपनी हँसी रोकने कि कोशिश करती और फिर हँस देती क्योंकि उसको विनय का आवाज बदलकर बात करने का अंदाज बार-बार याद आ रहा है।

क्रमश:..

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