आसमान बुनती औरतें

भाग (160)

विनय हर्षा के चेहरे पर ढेर सारी खुशियों भरी मुस्कुराहट और हँसी कि आवाज को अपने अंदर समाहित करता रहा, उसने भी तो हर्षा को कभी इस तरह खुश होते देखा ही नहीं।

“सॉरी सॉरी मैं आपकी बात पर नहीं, आपके बोलने के अंदाज पर हँसी आ रही है।”… हर्षा एक बार फिर हँस दी, एक हाथ अपना मुँह पर रखती और फिर कुछ देर बाद हँसी को रोकने के लिए दूसरे हाथ को झटकने लगती जैसे हँसी उसके काबू में आ नहीं रही है।

चारों तरफ गुंजायमान खुशियों से मानो लग रहा है आकाश से मुस्कान की, ठहाकों की बारिश हो रही है हवा में संगीत घुल गया है और गाड़ी की सीट किसी समुद्र के किनारे का बीज बन गया है इतना खूबसूरत नजारा हर्षा के खुश होने पर ही अगर बदल जाता है तो यह तो सौभाग्य की बात है, न कोई बात याद है और न किसी बात की चिंता, इस समय है तो बस खुशी, खुशी और खुशी ।

विनय यही तो चाहता है कि वह जो भी बात करें उससे हर्षा दिल से खुश हो, जब मन मस्तिष्क से स्वतंत्र होगी तभी तो कोई बात आगे बढ़ेगी, वह किसी दबाव में किसी भी बात को करने कराने के पक्ष में कभी नहीं रहा, इसीलिए इतनी धैर्यता से इंतजार कर रहा है।

हर्षा को कुछ समय लगा अपने आप को संभालाने में, उसकी हँसी धीरे-धीरे थमी, चेहरे पर ढेर सारा गुलाल छिटक आया, वही आँखों से पानी के स्रोत झर गये।

“अब ठीक हो।”…विनय कुछ देर इंतजार करने के बाद बोला, वह देख रहा है कि शांत होने के बाद हर्षा कहीं खोने लगी है।

हूँ, स्वॉरी सर, वो मैं… ।”…हर्षा आगे कुछ कह ही नहीं पाई क्योंकि अब वह अपने ही खोल में वापस आ गई है जैसे वह पहले रहा करती थी वह तो कुछ समय के लिए हर्षा ने उस खोल को उतारकर फेका था।

विनय ने हर्षा के चेहरे पर दो रूप देख लिए, कहाँ तो वह बिंदास और खुशमिजाज हर्षा और कहाँ यह अपने आप में संकुचित और औपचारिकता ओढ़े हुए, जहाँ किसी से भी बात करते समय आपको अपने लहजे, अपनी तमीज और अपनी जुबान को काबू में रखना होता है।

आज हर्षा ने अपनी खूबसूरती में चार चाँद सचमुच में टाँक दिए हैं उसकी निश्चल हँसी ने उसके उस व्यक्तित्व के दर्शन कराये जो हर्षा हमेशा से छुपाती रही है और विनय यही व्यक्तित्व को बाहर लाना चाहता है अब चाहे जिस भी परिस्थिति में हर्षा ने अपने आपको रोक रखा हो लेकिन विनय तो ऐसी ही हर्षा चाहता है जहाँ वह स्वतंत्र हो, कभी भी कुछ भी कहने-सुनने के लिए उसे सोचना न पड़े और विनय को भी उसके स्वभाव को माहौल को समझना न पड़े, हम एक दूसरे से बिना सुने, कहे सब कुछ समझ जाये यही तो वह चाहता है।

क्रमश:..

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