आसमान बुनती औरतें

भाग (18)

हरदीप को अब पीठ में दर्द रहने लगा है, यह दर्द अब हर दो-चार दिनों में उठता है और एक दो दिनों के लिए हरदीप की हालत खराब रहती है इस दर्द से वह निचुड़ जाती है, लगता है यह दर्द उसके प्राण लेकर रहेगा, पर जब वह इस से निजात पाती, फौरन काम पर लग जाती। कुलदीप ने कई बार कहा कि डॉक्टर को दिखा देते हैं पर बिजी मानने वाली कहाँ थी, अपनी देसी दवा करती रहती और गर्म पानी से सिकाई करना उनका नियम ही है।

अब कुछ समय से हल्का हल्का दर्द बना रहता है जिस दिन ज्यादा दर्द होता है तभी वह घर पर रूकती वरना वह अपने गल्ले पर जाकर बैठ जाती, मन भी लगा रहता, दर्द की तरफ ध्यान ज्यादा जाता नहीं ।

इधर हर्षा और उसकी सखियों के साथ भी काफी समय गुजर गया जिंदगी ने अपनी लय ताल एक ही सुर में थामे रखी। राखी को अपने विदेशी प्यार का इंतजार रहता, रानी अपने प्यार की स्थाई नौकरी की प्रतीक्षा करती और हर्षा के तो बॉस का कोई अता-पता नहीं, स्नेहा को इन सब झंझटों से कोई लेना-देना नहीं था।

राखी के प्यार का काफी समय के बाद कोलकाता आना हुआ। रुप ही बदला हुआ था, सुंदर सुडौल शरीर का मालिक हड्डियों का ढांचा बन गया है, सूट पहनकर वह जैसे ही टूरिस्ट बस में आकर बैठा, राखी की सांसे अटक गई, उसके प्यार की यह हालत देखकर लगा हैंगर में सूट टंगा है, गालों की लाली उड़कर कहीं जा छूपी है, वहां हड्डियों का उभार आ गया है, आँखों के नीचे काले घेरों का साम्राज्य हो गया है, जैसे गहरे अंधेरे कुएँ में दो मद्धिम रोशनी अपनी अंतिम ऊर्जा जलाकर चमक रही है, सुस्त चाल ने राखी के सपनों को जबरदस्त झटका दिया ।

आज उसका मन ही नहीं लग रहा है, बार-बार बोलते हुए कहीं खो जाती, जिस प्यार के इंतजार में वह रोज सुबह इस आशा से बस में चढ़ती है कि उसका प्यार शायद आज मिले, आज दिख जाए, लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता, बस इंतजार और इंतजार..।

राखी इंतजार करें भी तो क्यों नहीं, मन इंतजार की आशा में दिन गुजार देता है, पिछली बार वह वहाँ खड़े थे, उसके पास नहीं आते, ग्रुप से दूर खड़े होकर सिगरेट पीते रहते हैं, उनकी यह आदत कितनी अच्छी लगती उनके व्यक्तित्व पर कितनी सुहाती, मन करता था कि कभी उन्हें सिगरेट पीने से मना नहीं करूँगी पर ज्यादा पीने भी नहीं दूँगी, जब मेरा मन करेगा तभी पीने दूँगी, जाने क्या-क्या सोचती रहती, सपने तो सपने है, रंग-बिरंगे जिनसे ह्रदय का उत्साह, उत्सव चलता रहता है ।

नाम तो वह जानती है… “रमन” आज जैसे ही सभी टूरिस्ट विक्टोरिया महल देखने गए वह गाड़ी में ही बैठी रही, पता नहीं क्यों आज उसे हर जगह से उकताहट हो गई। गाड़ी में एक लड़का गाइड भी रहता है जो सहायता के लिए मौके-बेमौके राखी का काम कर देता है ।

कुछ देर बाद ही रमन भी बस मैं वापस आ गया।

“आप गए नहीं मिस्टर रमन,”…बात की गरज से राखी बोली।

“नहीं,..आप क्यों नहीं आई ..”?

“वैसे ही, मन कुछ ठीक नहीं …”

“क्या हुआ है।”

“कुछ नहीं ।”

“देखिए, अपनी परेशानी बांट लीजिए, अच्छा लगेगा,” ..रमन ने आग्रह किया, यह पहला अवसर था जब वह राखी से बात कर रहा है ।

“मौन…”

“देखिए, आपको मुझसे बात करने में आपत्ति हो तो माफ करें,”… कहता हुआ रमन उठ खड़ा हुआ, सम्भवतः वह बस से नीचे उतर जाता।

“नहीं-नहीं, मिस्टर रमन, ऐसी बात नहीं है,”…राखी ने जल्दी से कहा ।

“फिर क्या बात है …।”

“वो..,” राखी अपने हाथ आपस में रगड़ती रही।

“कहिए भी..।”

“मैं, कहना चाह रही थी कि,”… राखी पुनः चुप।

“देखिए, बोल भी दीजिए, अगर आपको ऐसा लगता है कि मुझे अच्छा नहीं लगेगा, तो आप मेरी तरफ से बेफिक्र रहें, मैं आपकी किसी बात का बुरा नहीं मानूँगा,”… रमन ने अपनी वाणी में मिठास की भरपूर मात्रा डालकर कहा।

“मैं जानना चाह रही थी कि क्या आप की तबीयत खराब है ?”…

“हां,”… रमन के होठों पर मुस्कुराहट खेल गई, वह यही तो जानना चाह रहा था कि यदि इन्हें मुझसे थोड़ा भी लगाव होगा तो मेरी हालत पर फिक्र जरूर होगी, हुआ भी वही ।

“क्या हुआ है ?”.. राखी ने हिम्मत करके पूछा।

” सुन पाओगी,”…

राखी ने नजरें उठाकर देखा तो दिल एक बार कांप गया, पता नहीं यह डर कैसा ।

“मुझे खुद पता नहीं क्या हुआ है…”

” क्यों, डक्टर ने बताया तो होगा,”… राखी के मुँह से बेतहासा निकला ।

“हां, वह भी कह रहे हैं कि अभी हथकड़ी कर रहे हैं, समझ नहीं पा रहे करता हुआ है,”…

“कैसे,… मेरा मतलब कैसे समझ नहीं पा रहे, किसी ओर डाक्टर को..किसी बड़े शहर मैं स्पेसलिस्ट डाक्टर को… कहीं…राखी अपनी बात कह ही नहीं पा रहा है उसे बैचैनी ने घेर लिया है।

“खाना पच नहीं रहा, एक बात ही समझ आई है डाक्टरों को,”…रमन लापरवाही से बोला।

“ओह …यह कब पता चला,”… राखी थकी हुई आवाज में बोली।

“दो माह पहले, इलाज चल रहा है,”… रमन की आवाज में भी आद्रता आ गई थी ।

रमन राखी के नजदीक आए तो देखा, राखी की आँखों में आँसू झलक आए हैं, उन्हें अपने हाथों से समेटने को हुए तो राखी ने स्वयं उन्हें हटा लिया, अपना हाथ वापस खींच कर रमन राखी की झुकी पलकों को निहारता रहा ।

“डॉक्टरों का क्या कहना है,”… राखी ने पूछा ।

“उम्मीद तो जताई है,”…रमन ने रुखाई से कहा ।

“फिर तो आप जल्दी ठीक हो जाएंगे, दुनिया में ऐसी कोई बीमारी नहीं बची जिसका इलाज न हो,”…राखी ने स्वयं को संभाल कर दृढता से अपनी बात रखी ।

“शायद …पता नहीं,”…रमन की आवाज किसी गहरे कुएँ से आती लगी ।

“ऐसा क्यों कह रहे हैं आप, बहुत जल्दी ठीक हो जाएंगे,”… राखी ने माहौल को सहज बनाने का प्रयास किया ।

“कोई नहीं चाहता मैं ठीक हो जाऊँ,”…

” मतलब,”…

“कोई नहीं …नाते रिश्तेदार तो चाहते हैं कि मैं जल्दी से मर जाऊँ।”

“क्यों,”…घोर आश्चर्य से राखी ने पूछा ।

“उनका स्वार्थ जो है,”…

“मैं समझ नहीं पा रही,… आप कहना क्या चाहते हैं,” …राखी अभी भी उलझन में हैं ।

“आप चाहती हैं कि मैं ठीक हो जाऊँ, ..रमन ने सीधे राखी की आँखों में देखते हुए कहा।

“बिल्कुल, क्यों ठीक नहीं होंगे, मुझे तो आपकी बीमारी से तकलीफ है,”… राखी कह गई ।

“सच राखी,”…

“हां मिस्टर रमन, आपको ठीक होना ही होगा,” … राखी को लगा अंधेरे में एक चिंगारी नजर आ रही है, उसमें वह इतना ईंधन भरेगी कि वह अपनी सही रफ्तार से जलने लगे।

कुछ देर मौन पसरा रहा, रमन कुछ ऐसा अहसास अपने में जप्त करने में तल्लीन है जो उन्हें आज तक नहीं मिला।

क्रमश:…

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