आसमान बुनती औरतें

भाग (41)

हर्षा ने यह देखा कि विनय मैं कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया, अनावश्यक का फोन तो आता ही नहीं है, कुछ कहना होगा तभी फोन आयेगा, गम्भीर व्यक्तित्व का विनय कोई भी ऐसी बात नहीं करता जिससे हर्षा को कोई परेशानी हो, समझदारी तो कुटकुट के भरी है विनय में।

कुछ समय तक तो हर्षा खुद झिझकती रही लेकिन जब काफी समय हो जाता तो वह खुद फोन लगाकर हाल-चाल पूछ लेती, धीरे धीरे यह हुआ कि विनय से बातें करना हो तो हर्षा फोन लगाने लगी, अब ज्यादातर हर्षा ही बात करती, धीरे-धीरे एक दूसरे से सहज बातें होती, खुलकर बातें कहने सुनने की प्रक्रिया चालू हो गई।

घर पर कुलवीर बेटी को रोज आफिस जाते और लौटकर घर आते समय एक आश भरी नजरों से देखती कि हर्षा अब ज़बाब दे तो मामा उस लड़के को हर्षा को देखने भेज दें।

इन दिनों हर्षा नानी, मम्मीजी के सामने आने से बच रही है, उसे लगता है कि मां और नानी अनुभवी हैं और खासकर नानी तो उसमें आए परिवर्तन को झट पकड़ लेंगी फिर पीछा नहीं छोड़ेगी कि बताओ क्या बात है।

विनय ने जब से उससे अपने दिल की बात कही है वह वैसे भी सपनों की दुनिया में ही विचरती रहती है, यह भी एक अद्भुत संसार है जिसमें इंसान अपने व्यक्तित्व के उन पहलूओं से परिचित होता है, जिसकी जानकारी उसे नहीं होती, हर्षा छुपाना सीख गई, कुछ न कहना सीख गई, इंतजार करना सीख गई, प्यार करना सीख गई, और दिल ही दिल खुश होना सीख गई, यह सारे परिवर्तन उसमें आए हैं जो पहले कभी नहीं थे इसलिए हर्षा खुद आश्चर्यचकित है कि उसमें इस तरह का बदलाव आ रहा हैं।

हरदीप अब रोज नियम के अनुसार पेलेस जाती है और फिर शाम को ही वापस आ रही है, मम्मी जी का भी यही हाल है दोनों महिलाएँ अपने कर्म की वेदी पर स्वाहा होने के लिए तत्पर खड़ी रहती हैं, हर्ष जब भी उनका जुनून, उनका समर्पण देखती है उसे गर्व होता है कि वह इतनी संघर्षरत नानी और मां की बेटी है।

क्रमश:..

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