आसमान बुनती औरतें

भाग (45)

लेकिन हर्षा का दिल है कि मानता ही नहीं, जब देखो तब ही वह सब बातें याद करता रहता है जो विनय के साथ समय बिताया है उसका अच्छा पहलू भी सामने लाता है और जो पहलू उस समय मस्तिष्क ने देखने-सुनने नहीं दिया उसको भी अपनी खोजी दृष्टि से खोज-खोज कर कहां-कहां अपनेपन की झलक नजर आती है ढूंढ ही लाता है।

इधर रानी और स्नेहा हर्षा से बात करने के लिए तड़प रही है, दूसरे दिन सुबह ही स्नेहा का फोन आ गया।

“हर्षा, क्या हुआ रमन आया या नहीं, राखी ने कुछ बताया,”… स्नेहा ने उतावली हो कर पूछा।

“टूरिस्ट बस में गया है, राखी से काफी बात हुई है उसने लौट के मुझे बताया था, कल वह लोग शायद कहीं जाएंगे, बैठ कर बात करेंगे तभी कुछ सार्थक बातचीत हुई या नहीं पता चलेगा,”… हर्षा ने विस्तार से बता दिया।

“हम लोग भी तैयारी करें क्या रमन से मिलने की, एक बार तो मिला जा सकता है,”… स्नेहा बोली।

“हां मिल तो सकते हैं पर राखी से पूछने के बाद ही, वह चाहती भी है कि नहीं, वह रमन से कैसे कह सकती है कि मेरी सखियाँ मिलना चाहती है थोड़ा सा उसे भी तो सामान्य होने दो रमन के साथ,”… हर्षा ने सुझाव दिया।

हां ठीक कह रही हो, मैं राखी से भी बात कर लेती हूँ, वह भी बता देंगी कि कहाँ तक बात बढ़ी, हर्षा हमें उसे प्रोत्साहित करते रहना पड़ेगा वरना राखी अपनी बात नहीं रख पाएगी, थोड़ी सी अंतर्मुखी है पता है ना तुम्हें,”… स्नेहा ने फिक्र जताई।

“यह बात तो ठीक है लेकिन इस राखी का क्या करें यही तो बताइए कि हम कब मिले और उसका क्या प्रोग्राम है,”… हर्षा ने कहा

“तुमसे ऑफिस में मिले तो पूछना मैं तो खैर अभी फोन कर रही हूँ, तुम बोलो करु फोन,”… स्नेहा ने इजाजत मांगी।

“अरे ऐसा क्यों बोल रही हो बात करने में क्या दिक्कत है, इस समय तो वह घर पर ही होगी, हो सकता है कि उसका फोन व्यस्त हो, देख लो,”… हर्षा ने बोली।

“ठीक है, बाय हर्षा,”…

“बाय बाय स्नेहा,”… कहते हुए हर्षा ने फोन रख दिया।

क्रमश:..

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